अनधिकृत कॉलोनियों के विरुद्ध जारी शासनादेश के अनुपालन न होने का जिम्मेदार कौन

पब्लिक एशिया ब्यूरो | विशेष संवाददाता
Updated: 06 Oct 2020 , 18:04:21 PM
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गाजियाबाद जिला को हम भारत माने तो अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि यहां पर आने वाले अभियंता वर्ग ने  मुगल व अंग्रेजों का किरदार निभा कर यहां मनचाही लूट की है,  जिसका परिणाम आज गाजियाबाद का निवासी भुगत रहा है यहां  कॉलोनाइजर बिल्डर अभियंता व अधिकारी वर्ग के गठजोड़ से शहर को बदसूरत व वेढगा बनाने की बेलगाम कारगुजारी की गई हैं,  इनके आगे शासन व प्रशासन के नियम कायदे बौने साबित हुए हैं I

शासन द्वारा हर संभव कोशिश की गई कि शहर में  कृषि भूमि में अवैध कालोनियां न पनप पाएं लेकिन अभियंता वर्ग ने शासन के भेजे नुमाइंदों से ही दूरभी संधि कर हर बार शासऩादेशों को ठेंगा दिखाया है I  ऐसा ही एक शासनादेश संख्या  1428/आठ-8-2018-194 कामप/2001 दिनांक 09-08-2018   अनाधिकृत कालोनियों पर प्रभावी नियंत्रण/रोकथाम हेतु  दिशा निर्देश देते हुए जारी किया गया जिसमें स्पष्ट किया गया कि उत्तर प्रदेश नगर योजना और विकास अधिनियम 1973  के अनुसार  विकास क्षेत्र में कोई भी विकास/निर्माण कार्य करने से पूर्व अधिनियम की धारा 15 के अधीन अनुज्ञा प्राप्त किया जाना अनिवार्य है,   साथ ही उक्त पत्र में स्पष्ट किया गया कि उक्त नियम की अवहेलना करते हुए लेआउट प्लान स्वीकृत कराए बिना व निर्धारित मानक/स्तर  पूरा किए बिना निर्मित हो गई है,  साथ ही धारा -26, 27 व 28 के अधीन प्रभावी कार्रवाई /अनुश्रवण नहीं किए जाने के कारण अनियंत्रित विकास कार्य  पर रोक लगाने के स्थान पर उस में लगातार वृद्धि हो रही है जो  गंभीर चिंता का विषय है तथा उक्त नियमों का अनुपालन नहीं किए जाने पर व्यापक जान माल की हानि हुई है I

पत्र में यह भी स्पष्ट किया गया कि विकास प्राधिकरण  निवासियों की मांग के अनुरूप निवास हेतु पर्याप्त भवन/भूमि की पूर्ति में असफल रहे हैं तथा विकास प्राधिकरण की इस अकर्मण्यता का लाभ मध्यवर्ती  कॉलोनाइजर द्वारा उठाया जाता है,   प्राधिकरण की उदासीनता का फायदा उठाकर तथाकथित मध्यवर्ती कॉलोनाइजर किसानों को गुमराह कर उनकी भूमि को औने पौने दामों में भय दिखाकर क्रय़ कर कृषि भूमि में प्लाटिंग कर इकाइयों में विक्रय कर दी जाती है, जिसका खामियाजा क्रेता को भुगतना पड़ता है तथा क्रेता विक्रेता व राज्य सरकार को हानि होती है तथा मध्यवर्ती कॉलोनाइजर ही जबकि मुख्य दोषी होते हुए भी लाभ कमा जाता है  इस सभी उपरोक्त बिंदुओं पर विचार उपरांत निर्णय लिया गया कि अनधिकृत कॉलोनियों के विकास/ निर्माण हेतु मुख्य रूप से दोषी कॉलोनाइजर्स के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाए दोषी कॉलोनाइजर्स की संपत्ति जप्त कर निवासियों को मूलभूत अवस्थापना सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं जिलाधिकारी/ उपाध्यक्ष विकास प्राधिकरण अनधिकृत कॉलोनियों के निर्माण की रोकथाम में विफल/सलिप्त दोषी अधिकारियों/कार्मिकों को चिन्हित कर जवाबदेही तय की जाए तथा अभियंता वर्ग को उत्तरदाई बनाया जाए जिलाधिकारी/उपाध्यक्ष विकास प्राधिकरण अनधिकृत कॉलोनियों को रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर के माध्यम से गूगल मैप 15 दिन में अनिवार्य रूप से तैयार करेंगे तथा गूगल मैप की प्रति सक्षम अधिकारी से हस्ताक्षरित/प्रमाणित प्रति सील कर सुरक्षित रखेंगे तथा एक-एक प्रमाणित प्रति अध्यक्ष/मंडलायुक्त तथा मुख्य नगर एवं ग्राम नियोजक उत्तर प्रदेश को उपलब्ध कराएंगे तथा भविष्य में विकास क्षेत्र को जॉन्स में विभाजित करेंगे तथा जॉन्स में तैनात अधिकारी चार्ज छोड़ते/ग्रहण करते समय गूगल मैप की हस्ताक्षरित प्रति अनिवार्य रूप से एक दूसरे को हस्तांतरित करेंगे ताकि यह स्पष्ट हो सके कि उक्त अधिकारी की तैनाती अवधि के दौरान कितना अवैध/अनधिकृत निर्माण हुआ है अनधिकृत कॉलोनियों के निर्माण की दशा में जॉन्स में तैनात अधिकारी के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई प्रचलित की जाए  तथा आवास बंधु द्वारा विकास प्राधिकरण के स्तर से निर्मित समस्त आदेश एवं तथ्यों की जानकारी वेबसाइट पर अपलोड की जाएगी साथ ही केंद्र सरकार/राज्य सरकार या सार्वजनिक अभिकरणों के स्वामित्व की भूमि, संवेदनशील क्षेत्रों, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहरों, जलमग्न क्षेत्र, नदी,नाले, तालाब/पोखर आदि पर निर्मित अनधिकृत कॉलोनियों/कब्जों को हटाने हेतु  प्रभावी कार्रवाई की जाए अनधिकृत कब्जों को हटाने हेतु पर्याप्त पुलिस बल संबंधित सर्किल  अफसर द्वारा उपलब्ध कराया जाएगा I 

इस संबंध में गृह विभाग उत्तर प्रदेश शासन से विस्तृत दिशानिर्देश अलग से   निर्गत किए जाएंगे एवं विकास प्राधिकरण द्वारा व्यक्तियों की मांग के अनुरूप भूमि/भवन की पूर्ति करने हेतु कार्य योजना तैयार की जाए यह भी ध्यान रखा जाए कि उपरोक्त कार्रवाई से विवादित भूमि पर निर्मित अऩधिकृत कॉलोनियों के निवासियों को कोई कठिनाई/क्षति/हानि नहीं हो    अंत में सबसे महत्वपूर्ण यह कि आवास एवं विकास परिषद/विकास प्राधिकरण/नगर निकाय के ऐसे अभियंता जो अवैध निर्माण होने देने के लिए उत्तरदाई थे उनके विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई के साथ-साथ उनके विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज कराई जाए यह भी लिखा गया कि उक्त दिशा निर्देशों का कड़ाई से  अनुपालन किया जाए I


 आज स्थिति 2 वर्ष बाद भी जस की तस है उक्त शासनादेश पता नहीं कहां दबा पड़ा सीसक रहा होगा और अभियंता वर्ग शासनादेश की छाती पर बैठकर मूंग दल रहे होंगे बात यहीं खत्म नहीं होती प्रश्न यह है कि शासनादेश लावारिस क्यों छोड़ दिए जाते हैं इनको जन्म देकर फिर क्यों  इन्हें अनाथ बनाया जाता है इनकी रखवाल क्यों नहीं की जाती जितना दोषी स्थानीय प्रशासन है उतना शासन भी दोषमुक्त नहीं प्रतीत होता यहां शासन की भी बराबर जवाबदेही तय होनी चाहिए वरना तब एक दूसरे पर दोष मरते रहेंगे नौकरशाही का बोलबाला रहेगा और लोकतंत्र ऐसे ही  बिलखता और सिसकता रहेगा I




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