अफगानिस्तान को आतंक प्लेटफार्म नहीं बनने दिया जाएगा,क्षेत्रीय सुरक्षा सम्मेलन में आठ देश हुए शामिल

संजीव ठाकुर, चिंतक, लेखक | पब्लिक एशिया
Updated: 11 Nov 2021 , 11:56:17 AM
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वैश्विक परिदृश्य में अफगानिस्तान में तालिबानी शासन आने के बाद वहां स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। भारत ने देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल की पहल पर अफगानिस्तान मसले पर कई देशों के सुरक्षा सलाहकारों की एक महत्वपूर्ण बैठक बुधवार के नई दिल्ली में आयोजित की गई है। इस महत्वपूर्ण मीटिंग के डायलॉग में अमेरिका रूस, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजीकिस्तान,कजाखस्तान, उज्बेकिस्ता और तुर्कमेनिस्तान जैसे महत्वपूर्ण आठ देश शामिल हुए। इस मीटिंग में अफगानिस्तान के हालात को लेकर बात हुई है। 8 देशों के सुरक्षा अधिकारियों ने बुधवार को तालिबान नियंत्रित अफ़गानिस्तान से आतंकवादी गतिविधियों के संभावित विस्तार पर चिंता जताई है और इस वैश्विक अशांति फैलाने वाली चुनौती से निपटने के लिए सामूहिक एकता का आह्वान भी किया गया है।


पाकिस्तान और चीन अभी तक यह समझ रहे थे कि रूस उनका हमकदम है, पर रूस ने उनकी आशाओं पर पानी फेरते हुए अपने प्रतिनिधि को भारत भेज कर विश्व शांति के लिए बड़ा संदेश दिया है। अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के आने से वैश्विक शांति को खतरा पैदा हो गया एवं वहां के हालात दिन प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं। ऐसे में भारत द्वारा अफगानिस्तान के मसले पर महत्वपूर्ण बैठक पर ये सारे देश अपनी सहमति जताकर अपने प्रतिनिधि भेज कर सामूहिक एकता का परिचय दिया है। इस महत्वपूर्ण बैठक पर अमेरिका के नए भारत के राजदूत थॉमस वेस्ट भी शामिल हुए, मध्य एशियाई देशों के अफगानिस्तान के तमाम पड़ोसियों ने अपनी सुरक्षा हेतु गहरी चिंता जता कर इस महत्वपूर्ण डायलॉग जिसमें अफगानिस्तान में तालिबानी प्रशासकों द्वारा आतंकवाद का परचम फैलाकर वैश्विक अशांति का संदेश दिया है।


इसके उपचार के लिए भारत एक महत्वपूर्ण देश माना जा रहा है। रूस के प्रतिनिधि का इस बैठक में हिस्सा लेना इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि औपचारिक तौर पर रूस ने पाकिस्तान, चीन और उसके बाद तीसरे नंबर पर तालिबानी अफगानिस्तान को कुछ मुद्दों पर समर्थन दिया था। भारत में इस खास बैठक में अन्य देशों के साथ चीन तथा पाकिस्तान को भी न्योता दिया था, किंतु पाकिस्तान तथा चीन ने अपने प्रतिनिधि नहीं भेज कर फैसला कर यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह तालिबानी अफगानिस्तान के साथ है। रूस के सुरक्षा परिषद के प्रतिनिधि की भारत की हाल ही के दिनों में दूसरी यात्रा नए चीन तथा पाकिस्तान के कान खड़े कर दिए हैं। रूस ने अपना रुझान स्पष्ट रूप से वैश्विक शांति की ओर दिखा दिया है। अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी को रूस जरूर अमेरिका की हार की तरह स्वीकार कर रहा है, पर भारत का परंपरागत मित्र रूस लगातार भारत के साथ अफगानिस्तान में मामले में कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है।


अफगानिस्तान के मामले में चीन और पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गए हैं। मध्य एशियाई देश भी तालिबानी अफगानिस्तान से और उनकी हरकतों से अपनी सीमा की सुरक्षा को लेकर काफी हद तक चिंतित होकर इस महत्वपूर्ण बैठक में शामिल हुए हैं। उल्लेखनीय है कि अमेरिका के बाद सामरिक तथा आर्थिक महाशक्ति के रूप में चीन उभर कर आया है। पर रूस की शक्ति एवं सामरिक ताकत को किसी भी तरह कमतर आंका नहीं जाना चाहिए। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की अलग-अलग देशों से अलग-अलग दिनों में द्विपक्षीय वार्ताएं भी हुई है निश्चित तौर पर अफगानिस्तान इनके विचार विमर्श का मुख्य मुद्दा रहा है और भारत द्वारा बुलाई गई इस महत्वपूर्ण बैठक का मुख्य मुद्दा भी अफगानिस्तान में शांति स्थापना एवं वैश्विक देशों के अफगानिस्तान पाकिस्तान और चीन के प्रति रुख का ही था।


चीन और पाकिस्तान खासकर पाकिस्तान रूस को लेकर अभी तक यह समझता आया है कि रूस उसकी अफगान नीति के समर्थन में उसके साथ है। रूस ने इस बैठक में शामिल होने एवं भारत के साथ लगातार बातचीत करके यह तो स्पष्ट कर दिया है कि रूस आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देश के साथ किसी तरह का भी समझौता नहीं करेगा। इस बैठक में उग्रवाद और आतंकवाद के खिलाफ एकता का आह्वान किया गया है। पर यह तो तय है की सीमाई शांति स्थापना के लिए सारे देश एक दूसरे की मदद करने एवं सौहार्द्र बढ़ाने में एक साथ और एकजुट हैं।
संजीव ठाकुर, चिंतक, लेखक, रायपुर छत्तीसगढ़, 9009 415 415,





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