आदमी जो अनंत जानता था,गणितज्ञों के गणितज्ञ

डॉक्टर.रामानुज पाठक | पब्लिक एशिया
Updated: 21 Dec 2021 , 14:05:52 PM
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राष्ट्रीय गणित दिवस 22दिसंबर पर विशेष:

(आदमी जो अनंत जानता था, गणितज्ञों के गणितज्ञ—श्री निवास रामानुजन)

यथा शिखा मयूराणाम , नागानाम मणयो यथा। तद वेदांग शस्त्रानाम , गणितम मूर्धनी वर्तते।।जैसे मोरो में शिखा और नागो में मणि का स्थान सबसे ऊपर है,वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों में गणित का स्थान सबसे ऊपर है।प्राचीन समय से भारत गणितज्ञों की सरजमी रही है भारत में , भास्कर, भास्कर द्वितीयऔर माधव सहित दुनिया के कई मशहूर गणितज्ञ पैदा हुए 19वीं सदी और उसके बाद में श्रीनिवास रामानुजन, चंद्रशेखर सुब्रमण्यम और हरीशचंद्र जैसे गणितज्ञ विश्व पटल पर उभर कर सामने आए आज पूरे विश्व में जब भी गणित की या गणित में योगदान की बात की जाती है तो श्री निवास रामानुजन का नाम प्रमुखता से लिया जाता है विश्व स्तर पर गणित के क्षेत्र में उनका योगदान अनुकरणीय है गरीबी, सीमित संसाधनों, और सरकारी लालफीताशाही के बावजूद उन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा से दुनिया को चमत्कृत किया था। संख्याओं के जादूगर कहें या संख्याओं के दोस्त, आजीवन शाकाहार के प्रति व्रती रहे,अध्यात्म को हर अनुसंधान कार्य में पिरोने वाले, किसी भी प्रश्न को 100 प्रकार से कहने वाले ,जीवट महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन जीते जी जितना प्रसिद्ध नहीं हुए उतना साकेत वासी होने के बाद प्रसिद्ध हुए उनके प्रमेय आज भी गूढ़ रहस्य है ,उनके माक थीटा फंक्शन में कैंसर की चिकित्सा छुपी है, 33वर्ष की अल्प आयु तक जीवित रहने वाले श्रीनिवास रामानुजन ने लगभग 4000 से अधिक प्रमेय लिखीं।

श्रीनिवास रामानुजन की आज 22 दिसंबर को 134जयंती है। 22 दिसंबर 1887 तमिलनाडु के एरोड शहर में जन्म लेने वाले श्रीनिवास रामानुजन का बचपन गरीबी और अभाव में बीता ,गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन जिन्होंने खुद से गणित सीखा और जीवन भर में 4000 प्रेमेंयों का संकलन किया ,उनके कुछ प्रमेयो को आज तक हल नहीं किया जा सका ।रामानुजन के परिवार का गणित से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था सन 1897 में रामानुजन ने प्राथमिक परीक्षा जिले में अव्वल स्थान प्राप्त कर के पास की थी ,सन उन्नीस सौ तीन में रामानुजन ने दसवीं की परीक्षा पास की यही उन्होंने घन और चतुर्घात  समीकरण हल करने का सूत्र खोज निकाला।12वीं की परीक्षा में गणित को छोड़कर सभी विषयों में फेल हो गए थे।श्रीनिवास रामानुजन स्कूल में हमेशा ही अकेले रहते थे उनके सहयोगी उन्हें कभी समझ नहीं पाए थे रामानुजन गरीब परिवार से संबंध रखते थे और अपनी गणित का परिणाम देखने के लिए पेपर की जगह कलम पट्टी का उपयोग करते थे शुद्ध गणित में किसी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं दिया गया था।13 साल की उम्र में रामानुजन ने लंदन विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर एस.एल .लोनी की त्रिकोणमिति पर लिखी गई विश्व प्रसिद्ध पुस्तक का अध्ययन कर लिया था एवं अनेक गणितीय सिद्धांत प्रतिपादित किए, 10 साल की उम्र में उन्हें गणित से विशेष प्रेम पैदा हुआ उन्हें सवाल पूछना बहुत पसंद था 1 दिन गणित के अध्यापक ने पढ़ाते हुए कहा अगर तीन केले तीन लोगों में बांटे जाएं तो तीनों को एक एक केला मिलेगा अगर 1000 के लिए 1000 व्यक्तियों में बांटा जाए तो भी सबको एक ही केला मिलेगा इस तरह सिद्ध होता है कि किसी संख्या को उसी संख्या से भाग दिया जाए तो परिणाम एक मिलेगा। रामानुजन ने खड़े होकर पूछा शून्य को शून्य से भाग दिया जाए तो भी क्या परिणाम एक ही मिलेगा।

15 साल की उम्र में रामानुजन ने "ए सिनॉप्सिस आफ एलिमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर एंड अप्लाइड मैथमेटिक्स" पुस्तक को पढ़कर खुद ही गणित पर कार्य करना प्रारंभ कर दिया था।कारर की पुस्तक को मार्गदर्शक मानते हुए गणित में कार्य करते रहे और उसे लिखते गए जो "नोटबुक" नाम से प्रसिद्ध हुए बचपन में रामानुजन का बौद्धिक विकास सामान्य बच्चों की तरह नहीं हुआ था। 3 वर्ष की आयु तक तो बोलना भी नहीं सीखपाए थे, रामानुजन 12वीं में दो बार फेल हुए थे गणित में हमेशा अव्वल रहते थे,और अपने सभी गणित के अनुसंधान के लिए अपनी कुलदेवी नाम गिरी की प्रेरणा को जिम्मेदार मानते थे उनका स्वयं का कहना था कि मेरे लिए गणित के सूत्र का कोई मतलब नहीं है जिसमें मुझे आध्यात्मिक विचार ना मिलते हो।रामानुजन कभी कभी तो अपनी ही लिखी प्रमेयो को भूल जाते थे,इनकी ऐसी ही असंकलित प्रमेय, टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च ने चार भागों में प्रकाशित किया है।दिसंबर 1896 रामानुजन ने स्वतंत्र परीक्षार्थी के रूप में 12वीं की परीक्षा पास करने की कोशिश की थी लेकिन वह कामयाब नहीं हो सके थे इसके बाद रामानुजन ने पढ़ाई छोड़ दी बिना डिग्री लिए ही रामानुजन को औपचारिक अध्ययन छोड़ना पड़ा अपने अध्ययन के बल पर रामानुजन कभी भी कोई डिग्री प्राप्त नहीं कर सके थे। विवाह 22 वर्ष की अवस्था में लगभग 9 वर्ष की कन्या जानकी देवी से हुआ था।शादी के बाद "हाइड्रोसिल" इस बीमारी से पीड़ित हुए और ऐसा लग रहा था कि उनका बचना नामुमकिन है किंतु एक डॉक्टर ने उनकी आर्थिक स्थिति को देखकर उनके ऑपरेशन का कोई शुल्क नहीं लिया था।विवाह के उपरांत घर का खर्च चलाना कठिन होता जा रहा था अतः रामानुजन में अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कई जगह हाथ-पैर मारे नौकरी की तलाश की किंतु सफल नहीं हुए। सन 1913 में रामानुजन ने 26 की उम्र में विश्व के प्रसिद्ध गणितज्ञ जी.एच. हार्डी को अपने 120प्रमेय कागज में लिखकर पत्र भेजा था शुरुआत में हार्डी, रामानुजन के पत्रों को मजाक के तौर पर लिया तथा उनके काम को फ्राड, माना था लेकिन जल्द ही उन्होंने उनकी प्रतिभा भांप ली थी,बाद में हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज बुला लिया था हार्डी के सानिध्य में रामानुजन ने खुद 20 रिसर्च पेपर प्रकाशितकिये थे।"हाईली कंप्रेस्ड नंबर" शीर्षक के अनुसंधान कार्य के आधार पर 1916 में रामानुजन को बीए की उपाधि प्रदान की गई रामानुजन के शोध प्रबंध का सार जनरल आफ लंदन मैथमेटिकल सोसायटी में 50 पेज के विस्तार से छपा था।रामानुजन के कार्यों एवं योग्यता को देखते हुए ब्रिटेन ने उन्हें बीए की मानद उपाधि दी बाद में उन्हें पीएचडी की भी उपाधि दी सन 1911 में रामानुजन का "सम प्रॉपर्टीज ऑफ़ बारनौली नंबर" ,से सबसे प्रथम शोध पत्र जनरल ऑफ़ मैथमेटिकल सोसायटी में प्रकाशित हुआ ,मार्च उन्नीस सौ चौदह को रामानुजन जी. एच. हार्डी के न्योता पर लंदन पहुंचे थे ।,

28 फरवरी 1918 को रॉयल सोसाइटी ने सबसे कम उम्र के भारतीय को अपना फैलो सदस्य बना कर सम्मानित  किया, उस समय जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था किसी भारतीय का रॉयल सोसाइटी में फैलो के रूप में चुना जाना अपने आपमें गौरव की बात थी।रामानुजन का दुबला पतला शरीर दूसरे लंदन का बेहद ठंडा मौसम उस पर खान-पान की उचित व्यवस्था का अभाव ऐसे में रामानुजन को टीवी छय रोग ने घेर लिया और उस समय टीवी या तपेदिक का कारगर इलाज उपलब्ध नहीं था, लेकिन रामानुजन की गणित की दीवानगी ने उन्हें चैन से नहीं बैठने दे रही थी, इससे उनकी तबीयत बिगड़ती गई और अंततः 27 फरवरी 1919 को भारत वापस लौटना पड़ा।

रामानुजन और प्रोफेसर हार्डी दो विपरीत व्यक्तित्व थे प्रोफेसर हार्डी एक ओर जहां नास्तिक थे मांसाहारी थे लेकिन रामानुजन आस्तिक थे और शुद्ध शाकाहारी थे ।रामानुजन काम के प्रति इतने जुनूनी थे कि लंदन में अत्यधिक ठंड के बावजूद उन्होंने कभी मांस मदिरा का सेवन नहीं किया और खाने के प्रति बेफिक्र रहते थे। विश्वप्रसिद्ध गणितज्ञ जी. एच.हार्डी  ने खुद को रेट किया 100 में से 25 का स्कोर देकर ,महान गणितज्ञ ए लिटिल वुड को 100 में से 30 का स्कोर दिया था, डेबिट हिलबर्ट को 100 में से 80 स्कोर दिया था किंतु महान गणितज्ञ रामानुजन को 100 में से 100 स्कोर दिया था उन्होंने कहा था कि यह मुझे नहीं पता कि रामानुजन ने मुझ से क्या सीखा लेकिन मैंने रामानुजन से बहुत कुछ सीखा। एक बार प्रोफेसर हार्डी और रामानुजन एक टैक्सी से जा रहे थे उस टैक्सी का नंबर 1729 लिखा था  हार्डी ने कहा कि जिस टैक्सी में हम लोग आए उसका नंबर कोई खास नहीं था रामानुजन ने कहा कि नहीं यह विशेष नंबर है।

एक का क्यूब प्लस 12 का क्यूब के रूप में या 9 का क्यूब प्लस 10 के क्यूब के रूप में व्यक्त किया जा सकता है या 1729 = 7 * 13 * 19। 1729 को रामानुजन संख्या माना जाता है। रामानुजन अंततः टीवी या तपेदिक से हार गए 26 अप्रैल 1920 को इस नश्वर शरीर को छोड़ दिया और साकेत वासीहो गए,इतनी कम आयु में उन्होंने जो कार्य किए वह निश्चित रूप से मील का पत्थर है।रामानुजन कुल 5 साल कैंब्रिज इंग्लैंड में रहे जी . एच.हार्डी  के साथ उन्होंने संख्या सिद्धांत पर आधारित कार्य किए गणित में की गई उनकी अद्भुत खोजो ने आज के आधुनिक गणित तथा विज्ञान की आधारशिला रखी गणितीय विश्लेषण, अनंत श्रृंखला, संख्या सिद्धांत तथा निरंतर भिन्न अंशों ने गणित को नए आयाम दिए, जबकि थीटा फंक्शन  तथा रामानुजन प्राइम ने गणित विषय पर आगे के शोध और विकास के लिए दुनिया भर को प्रेरित किया।महान गणितज्ञ रामानुजन की बायोग्राफी रावर्ट काआईनेजल ने सन 2007लिखी थी उसका नाम था "द मैन हू नो इनफिनिटी ;बायोग्राफी आफ जीनीयस मैथमेटिशियन" अर्थात आदमी जो अनंत जानता था। श्री निवास रामानुजन के निधन के पश्चात उनकी लगभग 5000 से अधिक प्रेमेंयों को छपाया गया।

तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने एक समारोह में महान गणितज्ञ रामानुजन की स्मृति में डाक टिकट जारी किया एवं उनकी 125वीजयंती अर्थात 2012,को राष्ट्रीय गणित वर्ष घोषित किया, और 22दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस घोषित किया,तमिलनाडु सरकार महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जन्मदिवस को राज्य आई. टी.दिवस के रूप में मनाती है।सन 2007में रामानुजन के महान व्यक्तित्व पर एक उपन्यास "द इंडियन क्लर्क" ,भी अमेरिका में प्रकाशित हुआ।भारतीय मूल के प्रो.वी. एस. वरदराजन एवं उनकी पत्नी ने लांस एंजिल्स की कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय को दस लाख डॉलर देकर रामानुजन के सम्मान में रामानुजन विजिटिंग प्रोफेसर शिप की स्थापना की।आज देश को बड़ी संख्या में गणितज्ञों की जरूरत है।इसके लिए हमें शैक्षणिक एवं मूल्यांकन पद्धति में सुधार लाना होगा प्रतिभाशाली छात्रों को प्रोत्साहित करना होगा ताकी उन्हें रामानुजन की तरह कठिनाइयों का सामना ना करना पड़े।यही श्री निवास रामानुजन को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।





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