इस साल तो कम नहीं होने वाली महंगाई की मार

नरविजय यादव | पब्लिक एशिया
Updated: 12 Jan 2022 , 12:22:35 PM
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कोरोना वायरस ने स्वास्थ्य समस्याएं ही नहीं बढ़ायीं, महामारी के चलते दुनिया के करीब डेढ़ सौ देशों में महंगाई भी बेइंतहां बढ़ गयी। यह सिर्फ भारत की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की समस्या है और साल भर में धीरे धीरे ही काबू में आ पायेगी। कच्चे माल की कमी, सप्लाई चेन में बाधा, कलपुर्जों के उत्पादन में कमी और मौसमी बदलावों से कृषि उत्पादन प्रभावित होने से खाद्य पदार्थों से लेकर दैनिक इस्तेमाल की वस्तुएं तक महंगी हो गयीं। ओमिक्रॉन के प्रकोप के कारण अप्रैल तक हालात ऐसे ही बने रहने का अंदेशा है। इसके बाद भी महंगाई पर पूरी तरह से काबू पाने में नौ माह से एक साल का समय लग सकता है। इलेक्ट्रिक वाहनों की वैरायटी बाजार में आयेगी। इस दिशा में कई तरह के परिवर्तन देखने को मिलेंगे। बहुत सारे विकल्प सामने होंगे। कंपनियों को अपने ई-वाहनों की कीमतें भी कम करनी होंगी। धीरे धीरे पेट्रोल और डीजल चालित वाहनों से लोगों का मोहभंग होने लगेगा और सड़कों पर इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या बढ़ती जायेगी। चिप यानी सेमीकंडक्टर की किल्लत होने से न सिर्फ कारों के निर्माण में बाधा आयी, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री पर भी इसका भारी असर पड़ा।

 

इलेक्ट्रॉनिक्स और कंज्यूमर गुड्स बनाने वाली कंपनियों को कोरोना काल में कई और भी दिक्कतें पेश आयीं, जैसे कि स्टील और कॉपर जैसे कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि, समुद्री मार्ग से माल भेजने और मंगवाने में आ रही परेशानियों, बंदरगाहों पर कार्गो की धीमी आवाजाही और मालवाहन की बढ़ी हुई दरें और कामगारों की कमी से उपजी परेशानियां व अनिश्चित भविष्य। इंडस्ट्री के लोग बताते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं बनाने वाली कंपनियों की लागत 20 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है, जबकि दामों में उस गति से मामूली वृद्धि ही की गयी है। दीवाली से लेकर क्रिसमस तक त्यौहारी सीजन था इसलिए कंपनियों ने कम मार्जिन लेकर भी दामों में वृद्धि नहीं की। परंतु ऐसा लंबे समय नहीं चलने वाला। इसलिए बहुत संभावना है कि गोदरेज, एलजी, हिताची, पैनासोनिक जैसी इलेक्ट्रॉनिक्स गुड्स कंपनियां आने वाले दिनों में अपने उत्पादों के दामों में 6-7 प्रतिशत तक बढ़ोतरी कर सकती हैं। 

 

महामारी की वजह से दुनिया भर में महंगाई बढ़ी है। लॉकडाउन के समय अनेक चीजों का उत्पादन घट गया, लेकिन लॉकडाउन हटने के बाद बाजार में अचानक से तमाम चीजों की मांग बढ़ गयी। यही वजह है कि महंगाई यकायक बढ़ गयी। उदाहरण के लिए, कई देशों में कर्मचारियों की किल्लत बनी हुई है। मलेशिया में इसी कारण से पॉम ऑयल का पर्याप्त उत्पादन नहीं हो पा रहा है। पॉम ऑयल की कीमतें बढ़ने से साबुन, तेल, शैम्पू, बिस्कुट, कॉस्मेटिक्स, नमकीन आदि के दामों में बढ़ोतरी हुई है। कच्चे तेल का दाम बढ़ने से मालवाहन और डिलीवरी के दाम बढ़े हैं। इसी वजह से रासायनिक खाद, पेंट, रबड़ और सिंथेटिक धागे आदि की कीमतों में वृद्धि हुई है। समुद्री मार्ग से माल की ढुलाई महंगी हो गयी है। चीन में कामगारों की कमी की वजह से पीतल, तांबा, इस्पात, निकल व कोबाल्ट आदि औद्योगिक धातुएं महंगी हुई हैं। इसका असर टेलीविजन सेट, फ्रिज, एसी, वॉशिंग मशीन आदि प्रोडक्ट्स की कीमतों पर पड़ा है। जलवायु परिवर्तन से कई देशों में कृषि उत्पादों की आपूर्ति प्रभावित हुई है, जैसे कि ब्राजील में इसी कारण से गन्ने की फसल प्रभावित हुई। फलस्वरूप चीनी की कीमत बढ़ गयी।





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