ईमानदारी और सादगी के प्रतीक थे शास्त्री जी

अंकुर सिंह | पब्लिक एशिया
Updated: 01 Oct 2023 , 15:46:44 PM
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  देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर को शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी के घर उत्तर प्रदेश में मुगलसराय शहर के पास रामनगर में हुआ था। नेहरू जी के निधन के बाद शास्त्री जी देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। शास्त्री जी के ईमानदारी और सादगी-पूर्ण जीवन के अनेक किस्से है -
       पहला वाक़या जिक्र कर रहा हूं, जब शास्त्री जी देश के प्रधानमंत्री थे, एक बार उनके बेटे सुनील शास्त्री जी ने रात कही जाने हेतु सरकारी गाड़ी लेकर चले गए और जब वापस आए तो लाल बहादुर शास्त्री जी ने पूछा कहा गए थे, सरकारी गाड़ी लेकर इस पर सुनील जी कुछ कह पाते की इससे पहले लाल बहादुर शास्त्री जी ने कहा कि सरकारी गाड़ी देश के प्रधानमंत्री को मिली है ना की उसके बेटे को, आगे से कही जाना हो तो सरकारी गाड़ी का प्रयोग ना किया करो, शास्त्री जी यही नहीं रुके उन्होंने अपने ड्राइवर से पता करवाया की गाड़ी कितने किलोमीटर चली है और उसका पैसा सरकारी राज कोष में भी जमा करवाया। 
            हमारे देश में आजकल जन प्रतिनिधियों के परिजनों के साथ उनके करीबी लोग भी उन्ही के  सरकारी गाड़ी में घूमते हैं अपने व्यक्तिगत कार्यों के लिए।
          दूसरा वाक़या जिक्र कर रहा हूं, लाला लाजपतराय ने आजादी की लड़ाई लड़ रहे गरीब देशभक्तों के लिए सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी बनायीं थी जो गरीब देशभक्तों को पचास रुपये की आर्थिक मदद प्रदान करती थी, एक बार जेल से उन्होंने अपनी पत्नी ललिता जी को पत्र लिखकर पूछा कि क्या सोसाइटी की तरफ से जो 50 रुपये की आर्थिक मदद मिलती हैं उन्हें, जवाब में ललिता जी ने कहा हाँ जिसमे से 40 रुपये में घर का खर्च चल जाता है। शास्त्री जी ये पता चलते ही बिना किसी देर किये सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी को पत्र लिखा कि मेरे घर का खर्च 40 रुपये में हो जाता हैं, कृपया मुझे दी जानी वाली सहयोग 50 रुपये से घटा कर 40 रुपये कर दी जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा देशभक्तों को भी आर्थिक सहयोग मिल सकें।
                आज का युग में तो यदि जन प्रतिनिधियों के सैलरी बढ़ोत्तरी की बात हो तो क्या सत्ता पक्ष, क्या विपक्ष दोनों एक मत हो इस मांग पर अपना समर्थन दे देते हैं, भले ही राष्ट्रहित और समाज हित के मुद्दों पर ये लड़ते देखे जाए। ये भी नहीं सोचते आज के वर्तमान जनप्रतिनिधि की वह तो सरकारी पैसे से मौज से जी रहे है और देश का किसान, मज़दूर इत्यादि गरीबी, महंगाई और अभाव की जिंदगी जी रहे हैं। 
              किस्सों के दौर में आगे चलते है तो एक किस्सा और जुड़ा है शास्त्री जी से, शास्त्री जी जब प्रधानमंत्री थे और उन्हें मीटिंग के लिए कही जाना था। जब वह कपड़े पहन रहे थे तो उनका कुर्ता फटा था जिसपर परिजनों ने कहा आप नया कपड़ा क्यों नहीं ले लेते हैं। इस पर पलट कर शास्त्री ने कहा की मेरे देश के अब भी लाखों लोगो के तन पर कपड़े नहीं है, फटा हुआ तो क्या हुआ इसके ऊपर कोट पहन लूंगा, और फटा कपड़ा इस तरह कुछ दिन और काम में आ जायेगा।
      ऐसे थे हमारे शास्त्री जी, आज के जनप्रतिनिधियों, मंत्रियों के सुट लाखों में आते हैं इन्हे इससे फर्क नहीं पड़ता की देश के लाखों लोगो की वार्षिक आय भी नहीं होगी लाखों रुपये।  

 कथनी और करनी में समानता रखते थे शास्त्री जी,
       बात सन 1965 का जब भारत और पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था और भारतीय सेना लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने की सीमा के भीतर पहुंच गयी थी। घबराकर अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिए कुछ समय के लिए युद्ध विराम की अपील की उस समय हम अमेरिका की पीएल-480 स्कीम के तहत हासिल लाल गेहूं खाने को बाध्य थे हम भारतीय। अमेरिका के राष्ट्रपति  ने शास्त्री जी को कहा कि अगर युद्ध नहीं रुका तो गेहूं का निर्यात बंद कर दिया जाएगा। उसके बाद अक्टूबर 1965 में दशहरे के दिन दिल्ली के रामलीला मैदान में शास्त्री जी ने देश की जनता को संबोधित किया। उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की और साथ में खुद भी एक दिन उपवास का पालन करने का प्रण लिया। देश के सीमा के रक्षक जवान और देश के अंदर अन्नदाता के लिए जय जवान, जय किसान का नारा दिया।  
             10 जनवरी 1966 में ताशकंद में भारत के प्रधानमंत्री शास्त्री जी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच बातचीत करने का समय निर्धारित थी। लाल बहादुर शास्त्री और अयूब खान तय किये गये निर्धारित समय पर मिले। बातचीत काफी लंबी चली और दोनों देशों के बीच शांति समझौता भी हो गया। ऐसे में दोनों मुल्कों के शीर्ष नेताओं और प्रतिनिधिमंडल में शामिल अधिकारियों का खुश होना उचित था। लेकिन उस दिन की रात शास्त्री जी के लिए मौत बनकर आई। 10-11 जनवरी के रात में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत  हुई। ताशकंद समझौते के कुछ घंटों बाद ही भारत के लिए सब कुछ बदल गया। विदेशी धरती पर संदिग्ध परिस्थितियों में भारतीय प्रधानमंत्री की मौत से सन्नाटा छा गया। शास्त्री जी की मौत के बाद तमाम सवाल खड़े हुए, उनकी मौत के पीछे साजिश की बात भी कही जाती है, क्योंकि, शास्त्री जी की मौत के दो अहम गवाह उनके निजी चिकित्सक आर एन चुग और घरेलू सहायक राम नाथ की सड़क दुर्घटनाओं में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई तो यह रहस्य और गहरा हो गया।
     देश के नागरिकों को चाहिए  की शास्त्री जी के मौत की निष्पक्ष जांच की मांग करें सरकार से, यही शास्त्री जी के प्रति देश वासियों की सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

अंकुर सिंह
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