उत्तर प्रदेश की बीजेपी की सरकार ने तीन सालों मे चीनी मिल मालिकों को कराया दस हजार करोड़ से अधिक का मुनाफा:सवित मलिक

जितेंद्र सिंह | पब्लिक एशिया
Updated: 18 Jan 2022 , 16:57:19 PM
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नई दिल्ली।  यह बात सुनने में जरूर अजीब लगेगी परंतु इसमें सच्चाई सौ फीसदी है। 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले प्रधान मंत्री  नरेंद्र मोदी ने किसानो की आय दुगनी करने के साथ ही गन्ना किसानों को 14 दिन में भुगतान कराने की बात कही थी परंतु पांच सालों में वास्तविक स्थिति इसके एकदम विपरीत है। यह कहना है किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष  सवित मलिक का।

उन्होंने विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि उत्तर प्रदेश में मार्च 2017 में बीजेपी द्वारा सत्ता मे आने के बाद पेराई सत्र 2017-18 के लिये गन्ने का समर्थित मूल्य रुपये दस प्रति क्विंटल बढ़ाकर 325 रुपये प्रति क्विंटल किया गया। उस समय लगा था कि बीजेपी की योगी सरकार वास्तविक रूप से गन्ना किसानों के अनुरूप कार्य करेगी। 2017-18 के पेराई सत्र मे मिलों ने  ग्यारह लाख टन से अधिक गन्ने की पेराई करके कुल 120.50 लाख टन चीनी का उत्पादन कर राज्य की औसत रिकवरी 10.84 फीसदी प्राप्त की। 2018-19 से लेकर 2020-21 तक तीन पेराई सत्रों में बीजेपी की योगी सरकार ने किसानो के लिये गन्ने का राज्य समर्थित मूल्य किसी भी साल नहीं बढ़ाया तथा तीनों साल किसानो को गन्ने का मूल्य रुपये 325/ क्विंटल से ही भुगतान मिलों द्वारा किया गया। जब की इन तीन पेराई सत्रों (2018-19 से 2020-21) राज्य की कुल 120 चीनी मिलों ने दस से ग्यारह लाख टन गन्ने की पेराई कर 2017-18 की तुलना में चीनी की रिकवरी मे रिकार्ड बढ़ोतरी प्राप्त कर औसतन रिकवरी 11.49 फीसदी प्राप्त की और यह भी तब जब भारत सरकार की  उदार शीरा नीति के अनुसार कई निजी चीनी मिलों ने अपनी डिस्टिलरीज में बी हेवी molasses से ethonol का सीधा उत्पादन किया।

पेराई  सत्र 2019-20 में भी औसतन रिकवरी  रिकार्ड स्तर पर बढ़कर 11.73 फीसदी पहुंच गई तथा 2020-21 में भी यह औसतन 11.46 फीसदी रही। इस प्रकार 2017-18 की तुलना में तीनों पेराई सत्रों मे चीनी मिलों द्वारा एक से डेढ़ प्रतिशत अधिक चीनी प्राप्त की जब की उसे किसानो से गन्ना खरीदने में कोई भी अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ा।
 सवित मलिक ने विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि गन्ना विभाग से जुड़े शासन में बैठे गन्ना आयुक्त/अपर मुख्य सचिव गन्ना ने बीजेपी की योगी सरकार को आकड़ों के मकड़जाल में ऐसा उलझा दिया कि गन्ना मंत्री तथा मुख्य मंत्री मात्र एक करोड़ पचपन लाख के रिकॉर्ड  गन्ना भुगतान का तो बखान करते रहे परंतु योगी जी यह भूल गए कि उनके गन्ना आयुक्त/ अपर मुख्य सचिव गन्ना ने पिछले तीन सालों मे मिल मालिकों को दस हजार करोड़ से अधिक का मुनाफा दिलवा कर अपने भी करोड़ों के वारे न्यारे कर लिये और सरकार तथा किसानो की नजर में ईमानदारी का चौला पहने रहे। किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष  का कहना है कि 2017-18 की औसतन चीनी रिकवरी 10.84 फीसदी की तुलना मे लगातार तीन सालों तक एक फीसदी रिकवरी अधिक रहने से मिलों को प्रति क्विंटल गन्ने पर एक किलो चीनी अधिक प्राप्त हुई जिसका न्यूनतम समर्थन मूल्य रुपये 3100/ क्विंटल से चीनी बिक्री पर मिलों को रुपये 31/ किलो का अधिक लाभ हुआ जब की इन तीन सालों में चीनी को वास्तविक औसत बिक्री मूल्य भी मिलों को रुपये 3300 से 3400 प्रति क्विंटल प्राप्त हुआ।

इस प्रकार चीनी मिलों को 2018-19 से लेकर 2020-21 तक तीन पेराई सत्रों में औसतन दस से ग्यारह लाख टन गन्ने की पेराई से प्राप्त चीनी बिक्री से प्रति वर्ष रुपये 3300- 3400 करोड़ की अतिरिक्त आमदनी हुई और विगत तीन सालों में गन्ना आयुक्त ने मिलों को दस हजार करोड़ से अधिक का मुनाफा दिलाया जब की गन्ने के दाम में एक रुपये की बढ़ोतरी भी नहीं करायी।  मलिक ने सरकार तथा गन्ना आयुक्त/अपर मुख्य सचिव गन्ना पर किसानो से छलावा करने तथा मिल मालिकों से सांठगांठ का भी आरोप लगाया। सवित मलिक ने आगे बताया कि समाज वादी पार्टी के शासन में एक गन्ने की उच्च किस्म 0238 के आने से एक और जहां गन्ना किसानों की पैदावार औसतन 18-20 टन प्रति हेक्टेयर बढ़ी वहीं इस वैरायटी के गन्ने से चीनी मिलों को भी एक से डेढ़ फीसदी चीनी अतिरिक्त प्राप्त हुई। जब की बीजेपी की सरकार मे बिजली और डीजल के दामों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी होने से एक और जहां किसानो की प्रति हेक्टेयर लागत में बढ़ोतरी हुई वही दूसरी ओर 0238 वैरायटी में अधिक रोग लगने से इसमे पेस्टीसाइड भी अधिक उपयोग करना पड़ा जिससे किसानों को इस वैरायटी से अधिक उत्पादन पर गन्ना के मूल्य में तीन सालों तक बढ़ोतरी नहीं होने से कोई फायदा नहीं हुआ।

उल्टा चीनी मिलों को हर साल लगभग 3200  करोड़ से ऊपर का भी सीधा फायदा होने के बाद भी मिलों द्वारा किसानो को समय से गन्ने का भुगतान भी नहीं दिया गया। यहां तक की बजाज की 14 मिले, मोदी की दो मिल,सिंभावली ग्रुप की तीन चीनी मिलों सहित लगभग 22-24 मिलों पर अभी भी 1500 करोड़ रुपये से ऊपर का बकाया चल रहा है जब की वर्तमान पेराई सत्र 2021-22 को भी शुरू हुए लगभग ढाई महीने से ऊपर का भी इन मिलों पर किसानो का करोड़ों रुपये का गन्ना मूल्य भुगतान बकाया है परंतु सरकार के मंत्री सहित शासन में पांच सालों से एक ही कुर्सी पर बैठे गन्ना आयुक्त/ अपर मुख्य सचिव तो बस सरकार का यह गुणगान करते नहीं थकते की बीजेपी की सरकार ने तो अपने पांच साल के कार्यकाल में गन्ना किसानों को रिकार्ड तोड़ एक करोड़ पचपन लाख का भुगतान किया है जब की गन्ना मंत्री सहित गन्ना आयुक्त शायद यह भूल जाते है कि किसानो ने गन्ना मिल समितियों के माध्यम से अपना गन्ना चीनी मिलों को बेचा था और उसका नियमानुसार भुगतान चीनी मिलों ने किसानो को किया फिर सरकार ने कौन सा भुगतान किसानों को किया इस प्रश्न का भी जवाब बीजेपी को आने वाले विधानसभा चुनाव में किसान दे देंगे।




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