उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम व सूचना का अधिकार अधिनियम के बारे में जागरूकता फैलाने की जरूरत:एड किशन भावनानी

पब्लिक एशिया ब्यूरो | विशेष संवाददाता
Updated: 28 Jan 2021 , 13:45:24 PM
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गोंदिया - भारत देश में केंद्र व राज्य स्तर पर अनेक ऐसे अधिनियम, नियमावली, नियम, विनियम, दिशा निर्देश, अध्यादेश, लागू है या लागू किए जा रहे हैं और उनमें भी अनेक संशोधन किए जाते हैं, जो आम जनता के लिए बहुत ही जरूरी फायदेमंद व उपयोगी होते हैं और उनमें से कई अनेक रोजाना दिनचर्या से भी संबंधित होते हैं। परंतु यह जानकर बड़े अफसोस व दुख के साथ कहना पड़ता है कि आम लोगों को इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं होती। हालांकि कि शासकीय स्तर पर प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से सरकार इसका प्रचार-प्रसार भी करती है परंतु फिर भी जनता को इसके बारे में सूक्ष्मता से जानकारी नहीं होती। अतःजरूरत है बड़े पैमाने पर उपरोक्त अधिनियमों, अध्यादेशों, कानूनों, के बारे में विशाल स्तर पर जन जागरण अभियान चलाने का, खास करके तो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम और सूचना का अधिकार अधिनियम का जन जागरण अभियान जोरदार तरीके से चलाने की जरूरत है। क्योंकि जनता इसके बारे में उतना नहीं जानती जितनी जरूरत है। क्योंकि दोनों अधिनियम की रोजमर्रा के जीवन में हमेशा आवश्यकता होती है। एक तो हर आदमी ग्राहक बनकर सामान खरीदा है दूसरा सरकारी कार्यालय में से कई जानकारी प्राप्त करना होता है। दोनों बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि करीब-करीब हर व्यक्ति किसी न किसी रूप से इन दोनों व्यवहारों से सलंग्न है और जनता से इसके बारे में जानकारी होगी तो एक हिम्मत, सजगता, जज्बा और सावधानी का भाव उत्पन्न होगा, जो नागरिकों के लिए बहुत ही जरूरी है इसका उदाहरण हमें सोमवार दिनांक 11 जनवरी 2021 को ओडिसा राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के एक आदेश में देखने को मिला, जिसमें एक सिंगल बेंच जिसके अध्यक्ष श्री डी पी चौधरी के सम्मुख प्रथम अपील क्रमांक 411/2018 याचिकाकर्ता बनाम अमेजॉन डेवलपमेंट सेंटर प्राइवेट लिमिटेड मल्लेश्वरम के रूप में आया। जिसमें बेंच ने अपने 13 पृष्ठों के आदेश में अमेजन इंडिया को अनुचित व्यापार व्यवहार का दोषी पाया है। कंपनी पर यह दोष एक लैपटॉप की बिक्री पर एक ऑफर को वापस लेने के बाद लगा है। कंपनी ने 190 रुपए में लैपटॉप बेचने का ऑफर दिया था, हालांकि पुष्टिकरण रसीद जारी करने के बाद भी ऑफर को वापस ले लिया गया।बेंच ने कंपनी को शिकायतकर्ता को क्षतिपूर्ति के रूप में 45, हज़ार रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया है। शिकायतकर्ता कानून का छात्र है। आयोग ने फैसले में कहा, 'एक प्रतिष्‍ठित ऑनलाइन शॉप‌िंग वेबसाइट ऑफर के लिए विज्ञापन दिया, रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्रियों के अनुसार ऑपर की पेशकश की गई, शिकायतकर्ता ने ऑर्डर दिया और उसकी पुष्टि की गई तो दोनों पक्षों के बीच समझौता पूरा हो गया। यदि पुष्टि से पहले सुधार किया गया होता तो इस मामले पर अन्यथा विचार जाता।आयोग ने अमेजन के इस तर्क को खारिज कर दिया कि समझौता तीसरे पक्ष के साथ था और उसे छात्र और लैपटॉप विक्रेता के बीच अनुबंध की जानकारी नहीं थी। फैसले में कहा गया कि जब संबंधित विक्रेता को ई-कॉमर्स वेबसाइट प्लेटफॉर्म पर अनुमति दी गई थी, तो बाद की जिम्मेदरियों की को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। आयोग ने कहा,प्रस्ताव पेश करने से पहले,ओपी [अमेजन] को विचार करना चाहिए था कि क्या वह विज्ञापन जारी करने का फैसला कर सकता है और अनुबंध पूरा होने के बाद उसके पास वादे से दूर जाने का कोई कारण नहीं है। यह मामला वर्ष 2014 का है। जब कानून के छात्र ने अमेजन इंडिया की वेबसाइट पर एक ऑफर देखा, जिसमें एक लैपटॉप, जिसकी मूल कीमत 23,499 रुपए थी, की कीमत 190 रुपए की ऑफर की गई थी। महापात्रा ने उस लैपटॉप के लिए आर्डर दे दिया और ऑर्डर की पुष्टि भी प्राप्त कर ली, उन्हें आश्वासन दिया गया कि उत्पाद जल्द ही भेजा जाएगा। कुछ घंटों बाद, उन्हें अमेजन के ग्राहक सेवा विभाग से एक फोन आया, जिसमें कहा गया था कि 'मूल्य निर्धारण के मुद्दों' के कारण उनका ऑर्डर रद्द कर दिया गया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि यह अनुबंध के विशिष्ट प्रदर्शन का उल्लंघन था और कपंनी की हेल्पलाइन और ई-मेल के माध्यम से ग्राहक सेवा से संपर्क करने के कई प्रयासों के बावजूद, उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली, जिसके बाद उन्हें 17 जनवरी, 2015 को कानूनी नोटिस भेजना पड़ा।इसके बाद उन्होंने जिला उपभोक्ता फोरम में श‌िकायत की, जिसने कंपनी को सेवा में कमी का दोषी ठहराया और ‌शिकायत को आंश‌िक रूप से स्वीकार किया और 10, हज़ार रुपए का मुआवजा और मुकदमेबाजी की। लागत के रूप 2, हजार रुपए देने के का आदेश दिया। याचिकाकर्ता ने इसके बाद मानसिक पीड़ा के आधार पर मुआवजे में वृद्धि की मांग करते हुए राज्य आयोग का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने कहा कि एक प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए उन्हें तुरंत लैपटॉप की आवश्यकता थी, और अमेजन के अनुचित व्यापार व्यवहार के कारण उन्हें दूसर लैपटॉप खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने अनुरोध किया कंपनी पर दंडात्मक हर्जाना लगाया जाना चाहिए, ताकि वह भविष्य में इस प्रकार कि गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल न हो। मामले का पूर्ववर्ती उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,(संशोधित) 2019 के तहत निस्तारण किया गया।आदेश आयोग ने अपील की अनुमति दी और याचिकाकर्ता को मानसिक पीड़ा देने के एवज में अमेजन को 30, हज़ार रुपए का मुआवजा देने, 10, हज़ार रुपए दंडात्मक नुकसान के रूप में, और 5, हज़ार रुपए मुकदमेबाजी की लागत के रूप में देने का निर्देश दिया गया। इसके अतिरिक्त, 5, हज़ार रुपए लागत के रूप में भुगतान करने का निर्देश दिया गया। प्रतिवादी को यह मुआवजा आदेश की तारीख के 30 दिनों के अंदर देना होगा अगर वह यह मुआवजा निर्धारित अवधि में देने में चुप करता है तो 12% ब्याज देना होगा। 
*संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एड किशन भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र*




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