कट्टरपंथ धर्म का शत्रु ओर लोकतंत्र का दुश्मन

नरेंद्र तिवारी 'पत्रकार' | पब्लिक एशिया
Updated: 12 Jan 2022 , 11:23:07 AM
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 कट्टरपंथियों को सदैव धर्म और संस्कृति पर खतरा मंडराता नजर आता है। उनकी कोशिश समाज को एक काल्पनिक भय से भयभीत करने की होती है। यह ख़ौप का हथियार इन कट्टरपंथियों की ताकत होती है। इसी डर से इन कट्टरपंथियों के स्वार्थ सिद्ध होतें है, इनकी दुकानदारी भय से निर्मित किये वातावरण से ही चलती है। समाज में धर्म,संस्कृति को खतरे में बताकर समाज को कट्टरवादी सोच से संचालित करने का यह अनुक्रम धर्म के नाम पर संचालित संगठन सदियों से करते आ रहें है। दरअसल कट्टरता से निर्मित समर्थक वर्ग ही इन संगठनों की सरदारी का आधार है।

इन्हें जब सरदारी खोने का डर सताता तब ये एक नया भय समाज में पैदा कर देते है। हाल ही में अफगानिस्तान से वायरल एक वीडियो ने इस बात को सिद्ध भी कर दिया कि कट्टरपंथियों को अनेकों भय सताते रहते है। यह भी साफ हुआ की कट्टरपंथी बेहद डरपोक होतें है।  ऐसा ही नवीन भय अफगान की तालिबानी सरकार के कट्टरपंथियों को सताता प्रतीत हुआ। बंदूक की नोंक पर अफगान की चुनी हुई सरकार का तख्तापलट कर निर्मित तालिबानी हुकूमत को कपड़ों की दुकानों पर लगे महिला मॉडलों के पुतलों से ही डर लगने लगा। यह मॉडलों के पुतले जो ग्राहकों के आकर्षण के लिए कपड़ों की दुकानों के सामने सजे हुए होतें है। इन्हें नवनियुक्त तालिबान सरकार के सदाचार फैलाने ओर बुराई रोकने वाले मंत्रालय ने कपड़ो की दुकानों से हटाने का निर्देश दिया। इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि इन पुतलों से बूथ परस्ती को बढ़ावा मिल रहा है। समाज अश्लीलता एवं कामुकता बढ़ती है। कपड़ा दुकानदारों नें जब हुक्मरानों से धंधा कमजोर होने की याचना की तब  तालिबानी हुक्मरानों ने मॉडलों के इन पुतलों को पूरी तरह हटाने के बजाए इनकी गर्दनों को हटाकर लगाने का फरमान जारी कर दिया।

दरअसल यह घटनाक्रम कट्टरपंथियों द्वारा अफगान महिलाओं को बंदिशों में रखने एवं उनकी आजादी को प्रतिबंधित करने के उदेश्य से लगाया गया है। महिलाओं के मॉडल पुतलों की गर्दन काटकर लगाने का निर्णय तालिबानी कट्टरपंथियों के नवीन डर को उजागर करता प्रतीत होता है। अफगान की कट्टरपंथी सरकार में फैला उक्त भय दुनियाँ के सभी कट्टरपंथी संगठनों में समय-समय पर दिखाई देता है। भारत में भी तालिबान की तरह सोचने वाले अनेकों धार्मिक ओर जातिवादी संगठन इसी प्रकार भय के वातावरण का निर्माण करतें रहते है। इन संगठनों को वंदे मातरम राष्ट्र गीत गाने में डर लगता है। अंग्रेजी नववर्ष भयभीत करता है। इन्हें फिल्मों से आपत्ति है, गीत-संगीत भी इनके भय का कारण बन जाते है। शांता क्लॉज की तरह लाल वस्त्र धारण किया पुतला इनके गुस्से को बढ़ाता है। जैसे सांड को लाल कपड़ा देखकर गुस्सा आता है। किसी को माथे का टीका भयभीत करता है तो कोई दाढ़ी ओर टोपी से भयभीत होते रहतें है।

इन कट्टरपंथियों ने पशु-पक्षियों का भी अपनी सुविधा के अनुसार बंटवारा कर लिया है। रंग तो प्रकृति की देन है किन्तु लाल,हरा,नीला ओर केशरिया रंग भी इन संगठनों के भय के कारण होतें है। इसी प्रकार यह समाज में भी भय का वातावरण निर्मित करतें है। नए-नए प्रयोगों के माध्यम से समाज मे डर ओर ख़ौप के वातावरण का निर्माण करतें है। धार्मिक सह्रदयता ओर आस्थाओं को दरकिनार कर एक नवीन प्रकार के धर्म का स्वरूप गढ़ा जा रहा है। इंसानी दुनियाँ में धर्म की प्रासंगिकता समाज को एक व्यवस्था प्रदान करने की रही है। प्रत्येक कर्म जो हमारे आत्मिक ओर आध्यात्मिक विकास में सहायक हो,जो हमें एक उत्तम व्यक्ति बनाए,जो हमारे नैतिक और सांस्कृतिक विकास में सहायक हो,जो हमें सबल बनाता हो, वहीं धर्म है।कोई कर्म जो हमें भीरू बनाता हो धर्म का अंग नहीं हो सकता है। कट्टरपंथ प्रजातन्त्र का दुश्मन नम्बर एक है। यह धर्म का भी उतना ही बड़ा शत्रु है। दुनियाँ के सभी धर्म मानव कल्याण की भावना से प्रेरित है। धर्म मानव जाति के कल्याण के लिए है। कट्टरपंथियों ने इसका इस्तेमाल अपने स्वार्थों की सिद्दी के लिए किया है,यह धर्म के मूल स्वरूप को बिगाड़कर अपने अनुसार बनाना चाहते है। यही हाल जातिवादी संगठनों का भी है। वें भी कट्टरवाद का बेहूदा प्रदर्शन करने का कोई मौका नहीं गवातें। धर्म,जाति,वर्ण ओर सम्प्रदायों की यह व्यवस्था मानव जाति के विकास और उत्थान के लिए है।

जब इन कट्टरपंथियों का समावेश राजनीति में हो जाता है तब राजनीति भी कट्टरवाद की भाषा बोलने लगती है। राजनीति के मंचों से कट्टरवाद की भाषा का चलन बढ़ता जा रहा है। क्या कट्टरवाद से किसी राष्ट्र की प्रगति सम्भव है ? क्या धर्म के नाम पर निर्मित राष्ट्र नागरिक समाज के हित मे है ? इतिहास इस बात का साक्षी है की भारत और पाकिस्तान को एक साथ आजादी मिली थी। अंग्रेजी हुकूमत से एक साथ आजाद हुए इन दोनों मुल्कों में भारत ने धर्मनिरपेक्षता या पंथनिरपेक्षता की अवधारणा को अपनाया जबकि पाकिस्तान ने धर्म के नाम पर इस्लामिक राष्ट्र की अवधारणा से स्वयं को संचालित किया। आजादी के सात दशकों में भारत जंहा वैश्विक ताकत के रूप में विकसित हुआ, वहीं पाकिस्तान दुनियाँ में आंतकवाद की प्रयोगशाला बनकर रह गया। 1971 में बांग्लादेश भी पाकिस्तान से अलग हो गया।  दरअसल कट्टरवाद कभी भी मानव हितैषी नहीं रहा है। यह मानव में धर्म और जाति का भेद पैदा कर अपना उल्लू सीधा करता है।

अपनी सत्ता को बरकरार रखना इसका मूल उदेश्य होता है। जब कट्टरवादी विफल होते है तो यह अपने धर्म और समुदाय के विरुद्ध ही अत्याचार करने लगते है। अफगानिस्तान इसका उदाहरण है। भारत में इस प्रकार के अतिवादी संगठनों द्वारा अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए भय के नवीन विषयों का ईजाद किया जाता रहा हैं। यह विषय समाज की शांति व्यवस्था को बिगाड़ देतें है। आमनागरिकों के मन मे भी डर पैदा करते है। इन कट्टरपंथी संगठनों का नागरिकों की बुनियादी सुविधाओं से कोई वास्ता नहीं होता है। कट्टरपंथ भारत में भी अपनी जड़ें गहरी करता जा रहा है। राजनैतिक दलों द्वारा भी अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए इन कट्टरपंथी संगठनों  का सहयोग किया जा रहा है। कट्टरपंथी संगठनों पर समय रहतें सख्ती बरतना बेहद जरूरी है। कट्टरपंथ धर्म का शत्रु ओर लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन है।




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