घृणित बोल दण्डनीय किंतु हिंसा भी सजा के काबिल

नरेंद्र तिवारी पत्रकार | PUBLIC ASIA
Updated: 12 Jun 2022 , 14:16:12 PM
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इन दिनों देश में साम्प्रदायिक सदभाव बिगड़ा हुआ दिखाई दें रहा हैं। जिसका कारण भाजपा की पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता द्वारा टीवी बहस के दौरान पैगम्बर पर की गई विवादित टिप्पणी हैं। वैसे माहौल में तनाव बीते कुछ सालों से व्याप्त हैं। किँतु पैगम्बर पर की गई टिप्पणी के बाद लगातार दो शुक्रवारों की नमाज उपरांत कुछ मुस्लिमो के द्वारा राजनैतिक दल की पूर्व प्रवक्ता को कड़ी सजा देने की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन किये गए। इन प्रदर्शनों के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के मध्य हिंसक छड़प हुई, गोलियां चली, बड़े पैमाने पर आगजनी ओर तोड़फोड़ भी की गई। देश के विभिन्न शहरों से आ रहें वीडियो फुटेज एवं तस्वीरों में कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम युवाओं का सरकारी और सार्वजनिक सम्पत्तियों को नुकसान पहुचाने के दृश्य मन को विचलित कर देने वाले हैं।

पथराव से सड़कें भरी पड़ी हैं, सार्वजनिक संपत्तियों को आग के हवाले कर दिया गया। पत्थरों से आमजनता ओर पुलिस लहूलुहान हो गयी। वातावरण में व्याप्त दहशत तो इस बात की गवाही देती नजर आई कि घृणा के बोल का मुकाबला हिंसक गतिविधियों से किया जा रहा हैं। राजनैतिक पार्टी की प्रवक्ता की हेट स्पीच आलोचना के काबिल हैं, इस प्रवक्ता पर कानून के तहत कठोर दंडात्मक कार्यवाहीं की जानी चाहिए। किँतु हेट स्पीच के खिलाफ प्रदर्शन की आड़ में सार्वजनिक सम्पत्तियों का नुकसान, आगजनी, पथराव ओर हिँसक प्रदर्शन भी उतनी निंदा के काबिल है। दरअसल कट्टरपंथियों को यह भलीभांति समझ लेना चाहिए की भारत एक प्रजातांत्रिक देश हैं, इस देश मे संविधान सर्वोपरि है। संविधान से बड़ा कोई नहीं है। एक आम भारतीय के लिए संविधान की पालना ही राष्ट्र धर्म है। किन्तु वर्तमान के साम्प्रदायिक तनाव युक्त वातावरण में देखा जा रहा हैं कि धार्मिक कट्टरपंथ की आड़ में राष्ट्र की अस्मिता, गौरव ओर अंतरराष्ट्रीय पहिचान को कलंकित किया जा रहा हैं। यह कलंक राजनैतिक दलों के नेताओं की हेट स्पीच से तो लग ही रहा हैं। समय-समय पर भारत मे होने वाले साम्प्रदायिक दंगों के माध्यम से भी भारत की छवि राष्ट्रीय मंच पर खराब हो रहीं हैं। अभी लगातार नमाज के बाद उन्मादी भीड़ के रूप में किये जाने वाले पथराव तोड़-फोड़ हिंसक प्रदर्शनों के द्वारा भी छवि धूमिल हुई हैं। क्या विरोध प्रदर्शन का यह प्रजातांत्रिक तरीका हैं ? क्या इन विरोध प्रदर्शनों को संविधान के दायरे में रहकर नहीं किया जाना चाहिए। घृणापूर्ण भाषणों ओर घृणित अभिव्यक्तियों के विरोध में प्रदर्शन किया जाना चाहिए। किंतु इन प्रदर्शनों में पथराव हिंसा और तोड़फोड़ होना किसी भी नजरिए से उचित नहीं कहा जा सकता हैं। देश के नागरिकों को यह समझ लेना चाहिए कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं। जहां धार्मिक आधारों पर राज्य के द्वारा भेदभाव नहीं किया जाता हैं।

धर्म निरपेक्षता या पंथ निरपेक्षता भारत राष्ट्र की महत्वपूर्ण विशेषता हैं, आजादी के बाद से अनेकों अवसरों पर देश साम्प्रदायिक तनावों की जद में आया और जल्दी ही तनाव के दौर से बाहर भी निकल गया। किंतु तनाव का यह दौर बेहद लम्बा चलने वाला दिखाई दे रहा हैं। साम्प्रदायिक तनाव की इस आग से देश का बहुत नुकसान हो रहा हैं। दुनियां में भारत का महत्व ही इसलिए हैं कि भारत विभिन्न धर्म, जाति भाषा, ओर संस्कृतियों के बाद भी एक राष्ट्र के रूप में अपने नागरिकों का समुचित विकास करता रहा हैं। आजादी के बाद से अब तक भारत ने दुनियां में अपनी कीर्ति पताका फहराई हैं। विकास ओर उन्नति की इस प्रक्रिया में कभी कोई भेदभाव नहीं किया गया। भारत राष्ट्र में अल्पसख्यक राष्ट्रपति भी बने हैं ओर शिक्षा मंत्री भी, देश अपनी प्रतिभाओं का उचित सम्मान करता आ रहा हैं। अब समय आ गया हैं की तनाव के इस माहौल को परिवर्तित किया जाए। यह बदलाव किसी दूसरे धर्म को छोटा साबित करने से सम्भव नहीं है। यह बदलाव धार्मिक कट्टरपंथ की भावनाओं को भड़काकर भी सम्भव नहीं है। यह बदलाव धर्म की सर्व कल्याणकारी सोच से सम्भव हैं। धर्म का मूल श्रेष्ठ मॉनव का निर्माण करना हैं। ऐसे अनुशासित नागरिक जिनका ध्येय ही राष्ट्र का कल्याण हो। यह ध्येय तभी चरितार्थ हो सकेगा  जब हम धर्म के मूलार्थ को समझ सकेंगे। वर्तमान दौर में विभिन्न धर्मों के तथाकथित कट्टरपंथियों ने धर्म की आड़ में हिंसा का वातावरण निर्मित कर दिया है। जबकि धर्म का मूल शिक्षा, प्रेम, प्यार और मोहब्बत हैं। ज्ञान अध्यात्म और मॉनव कल्याण हैं। यह पंक्तिया बरसों पहले किसी सन्दर्भ में कही गयी थी शायद आज इन पक्तियों  को समझने की अधिक आवश्यकता दिखाई दे रहीं है- 'मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना।

' अब यह जानना जरूरी हो जाता हैं कि यह बैर करना कौन सीखा रहा हैं। ओर क्यों सीखा रहा हैं। धर्म की आड़ में हिंसा करने वाले तथाकथित साम्प्रदायिक तत्वों को यह समझ लेना चाहिए की विवादों के निराकरण कानून के दायरों में होना चाहिए। इसका निराकरण सड़को पर हिसंक प्रदर्शन से तो बिल्कुल भी सम्भव नहीं हैं। लम्बे ओर दहशत भरें साम्प्रदायिक माहौल में परिवर्तन होना चाहिए यह देश के अमन पसन्द नागरिकों की मांग भी है और जरूरत भी। धर्म विरोधी, देश विरोधी विचारों, अभिव्यक्तियों, भाषणों का घोर विरोध होना ही चाहिए। यह सब प्रजातांत्रिक तरीके से होना चाहिए। अनशन, आमरण अनशन, हड़ताल, धरना प्रदर्शन विरोध के लोकतांत्रिक तरीके हैं। इन तरीकों में पथराव तोड़-फोड़ हिंसा की कोई जगह नहीं हैं। हेट स्पीच की जितनी निंदा की जाए कम है, किंतु पथराव तोड़फोड़ ओर हिंसा भी आलोचनात्मक कृत्य की श्रेणी में आतें हैं। घृणित बोल दण्डनीय हैं किंतु हिंसा भी सजा के काबिल हैं।




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