नदियों को वैज्ञानिक आधार पर जोड़ा जाना चाहिए: सद्गुरु

संवाद सहयोगी | पब्लिक एशिया
Updated: 02 Feb 2022 , 16:09:58 PM
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बेंगलुरु।  ईशा फाउंडेशन के संस्थापक एवं आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने कहा है कि नदियों को आपस में जोड़ने के किसी भी नए प्रस्ताव का मूल्यांकन राजनीति के बजाय वैज्ञानिक एवं पर्यावरणीय योग्यता और दीर्घकालिक स्थिरता के आधार पर किया जाना चाहिए।

जैसा कि ईशा की आधिकारिक वेबसाइट पर दावा किया गया है कि सद्गुरु ने वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट से पहले यह बात कही। आध्यात्मिक गुरु ने कहा,“कुछ इंटरलिंकिंग परियोजनाएं पहले ही शुरू हो चुकी हैं। यह आदर्श होगा यदि हम भावनाओं और राजनीति स्थिरता के आधार पर वैज्ञानिक एवं पर्यावरणीय योग्यता और दीर्घकालिक स्थिरता के आधार पर इसका मूल्यांकन करते हैं।”

उन्होंने कहा, “मूल्यांकन इन परियोजनाओं से आर्थिक लाभ के आधार पर भी होना चाहिए और नई परियोजनाओं को शुरू करने से पहले प्राकृतिक संसाधन पूंजी के नुकसान की तुलना की जानी चाहिए।”

सद्गुरु ने कहा कि कुछ नदियों को जोड़ा जा सकता है, जो विशेष रूप से बाढ़ से निपटने के लिए फायदेमंद होंगी, लेकिन भारत की सभी नदियां जोड़ने के योग्य नहीं हैं क्योंकि नदियां यूरोपीय या उत्तरी अमेरिकी नदियों की तरह नहीं हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘उदाहरण के लिए यूरोप में एक वर्ष में औसत वर्षा लगभग 100-150 दिन होती है, और वहां दो से तीन महीने तक कम से कम 10 से 15 इंच बर्फ बैठी होती है। हमारे यहां, वर्षा एक वर्ष में केवल 60-70 दिन होती है और यह एक उष्णकटिबंधीय भूमि है जो बहुत प्यासी है और पानी पियेगी।”

सद्गुरु ने कहा कि भारत में, नदियां ज्यादातर वनों से पोषित होती हैं और इसलिए नदी के दोनों ओर पेड़ों के आवरण को वापस लाना पानी की कमी को दूर करने एवं बाढ़ तथा सूखे के प्रभाव को कम करने का एकमात्र दीर्घकालिक स्थायी समाधान है।

उन्होंने कहा कि नदी को आपस में जोड़ना इस धारणा पर आधारित है कि कुछ नदी घाटियों में अतिरिक्त जल आपूर्ति होती है जबकि अन्य में कमी होती है और उन्हें जोड़कर जल आपूर्ति को अधिक समान रूप से वितरित किया जा सकता है।





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