पितृ पक्ष यानी श्राद्ध

दीपाली कालरा | पब्लिक एशिया
Updated: 25 Sep 2021 , 16:55:00 PM
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श्राद्ध पक्ष (20 सितंबर से 6 अक्टूबर) में इस बार तृतीया तिथि बढ़ने से ये 17 दिन के होंगे। शास्त्रों में श्राद्ध पक्ष का बढ़ना अच्छा नहीं मना जाता है। पंडितों के मुताबिक श्राद्ध पक्ष  में शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित रहेंगे। इस दौरान पिंडदान, तर्पण कर्म और ब्राह्मण को भोजन कराने से पूर्वज प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व बताया गया है. पितृ पक्ष में पितरों को याद किया जाता है. पूर्वज अपनी देह का त्याग कर चले जाते हैं, उनकी आत्मा की शांत के लिए पितृ पक्ष में तर्पण किया जाता है. पितृ पक्ष के समय यमराज पितरों को अपने परिवारजनों से मिलने की आज्ञा दे देते हैं और उन्हें आजाद कर देते हैं. इस समय में अगर पितरों का श्राद्ध पूजन न किया जाए तो उनकी आत्मा बहुत दुःखी होती है और वे नाराज भी हो सकते हैं.

पितृ पक्ष में मृत व्यक्ति की जो तिथि होती है, उसी दिन श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध केवल पिता ही नहीं बल्कि अपने पूर्वजों का भी किया जाता है। जब कोई आपका अपना शरीर छोड़कर चला जाता है तब उसके सारे क्रियाकर्म करना जरूरी होता है, क्योंकि ये क्रियाकर्म ही उक्त आत्मा को आत्मिक बल देते हैं और वह इससे संतुष्ट होती है। प्रत्येक आत्मा को भोजन, पानी और मन की शांति की जरूरत होती है और उसकी यह पूर्ति सिर्फ उसके परिजन ही कर सकते हैं। 

अमृतसर की रहने वाली एक महिला ने अपनी आपबीती शेयर की है.......
"बहू, मधु खाना बन गया हो तो जाकर मंदिर में पंडित जी को दे आओ। आज तुम्हारे ससुर जी का श्राद्ध है। मैंने कल तुम्हें बताया था। 
          पहले तो मैं पंडित जी को घर पर ही बुला लेती थी, कोरोना की वजह के कारण घर नहीं आ पाएंगे इसीलिए तुम ही जाकर  भोजन दे आओ।" 
         मधु-"हां जी, मां जी खाना बन गया है।"मधु ऐसा कहकर थाली परोस कर पंडित जी को भोजन देने चली गई। 

            उसके ससुर जी की मृत्यु को सात बरस हो चुके थे, तब से हर बार भोजन देने का यही नियम था। 
थोड़ी देर बाद मधु वापस आ गई और अपने काम में लग गई और शीला जी ने भी उससे कुछ नहीं कहा। 
         दूसरे दिन शीला जी ने मधु को अपने पास बुलाया और पूछा,"मधु, कल तुमने खाना किसे खिलाया था? देखो, मुझे सच सच बताना क्योंकि मुझे पंडित जी के सहायक मिले थे ।उन्होंने बताया कि तुम भोजन देने मंदिर में नहीं पहुंची थी।" 
          मधु घबरा गई और बोली,"मां जी, जब मैं घर से निकली, तब हमारी गली के कोने पर एक बच्चा भीख मांग रहा था कि मैं तीन दिन से भूखा हूं मुझे ₹10 दे दो। मैंने उससे पूछा,₹10 में क्या लेकर खाएगा? तो कहने लगा सामने जो मटर की चाट वाला खड़ा है उससे चाट ले कर खा लूंगा।" 
       मैंने उससे कहा,"चाट से तेरा पेट भर जाएगा? तो वह चुप हो गया, फिर मैंने उससे कहा कि मैं पैसे तो नहीं दूंगी, मेरे पास खाना है, खाएगा? तो उसने बहुत खुशी खुशी वह खाना खा लिया और मैं घर आ गई। आप गुस्सा ना हो जाओ इसीलिए मैंने आपको नहीं बताया और मैंने यह भी सोचा कि आज के दिन पंडित जी को कई लोग भोजन देने जाएंगे, तो मैं इस  भूखे बच्चे को ही खाना खिला देती हूं।" 

          शीला जी बोली,"बहु मैं नाराज नहीं हूं बल्कि मैं हैरान हूं। पिछले सात सालों में ऐसा पहली बार हुआ है।" 
      मधु,"क्या हुआ है मां जी?" 
शीला जी-"कल सुबह जब तुम बच्चे को खाना खिला कर आई ,रात में मुझे तुम्हारे ससुर जी सपने में आए और बोले कि पिछले 7 वर्षों में पहली बार मुझे तुम्हारा श्राद्ध पर दिया हुआ भोजन प्राप्त हुआ है और मैं बहुत खुश हूं। बहू को आशीर्वाद देना।"तभी मेरी नींद खुल गई और फिर मुझे यह भी पता चला कि तुम मंदिर ग ई ही नहीं थी तब मैंने तुमसे पूछा कि खाना किसे खिलाया था? तुमने एक भूख से तड़पते बच्चे को खाना खिला कर बहुत अच्छा किया बहू, मैं बिल्कुल नाराज नहीं हूं।आप सब भी किसी भूखे को खाना अवश्य खिलाए।
मां बाप का सम्मान करे
दीपाली कालरा
सरिता विहार
नई दिल्ली




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