पेरिस ओलंम्पिक तक धैर्य धरे भारतीय हॉकी

राजेंद्र सजवान | पब्लिक एशिया
Updated: 16 Oct 2021 , 17:41:06 PM
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     " भले ही भारतगीय हॉकी ने टोक्यो ओलम्पिक में कोई बड़ा तीर नहीं चलाया लेकिन कोरोना काल में हमारे खिलाडियों ने जैसा प्रदर्शन किया उसे देखते हुए भविष्य की उम्मीद जरूर बंध गई है।  कांस्य पदक जीतने वाली पुरुष और चौथे स्थान पर रही ,महिला टीम हर बड़े सम्मान और साधुवाद की पात्र हैं।  लेकिन पागलपन की हद पार करना ठीक नहीं है। " एक पूर्व ओलम्पियन के अनुसार   भारतीय हॉकी के कर्णधारों और हॉकी इंडिया को टोक्यो ओलम्पिक के प्रदर्शन को विनम्रता से लेना चाहिए और पेरिस ओलम्पिक तक टीम की प्रगति को ध्यान से देखना होगा।  यदि पेरिस में  हमारी टीमें  बेहतर कर पाती हैं या  इसी प्रदर्शनको दोहरा पाती  हैं तो काफी रहेगा।  

       हॉकी के लिए एक अच्छी बात यह है कि उसे उड़ीसा सरकार के रूप में बड़ा और समर्पित प्रायोजक मिल गया है।  यह भी सही  है कि अन्य खेल संघों कि तुला में हॉकी इंडिया अपने खिलाडियों का बेहतर ध्यान रख रही है लेकिन खिलाडियों, कोचों और सपोर्ट स्टाफ को यह नहीं भूलना चाहिए कि देश के हॉकी प्रेमी अब उनसे और अधिक कि उम्मीद करने लगे हैं। 

     दोनों ही टीमों ने इस मुकाम को पाने में 40
 से 50  साल लिए है।  इस अवधि में देश ने उन पर करोड़ों खर्च किए,  विदेशी कोच और सपोर्ट स्टाफ बुलाया गया। तब जाकर हल्की  फुल्की  सफलता मिली है जिस पर हम आप इतरा रहे है।   खासकर,  महिला टीम की कामयाबी पर कुछ ज्यादा ही शोर मचा है।  हम यह भूल जाते हैं कि 2002  के मैनचेस्टर कॉमनवेल्थ खेलों में भारतीय महिला टीम ने न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिआ और अंततः इंग्लैण्ड जैसी दमदार टीमों से पार पाते हुए स्वर्ण पदक जीता था।  ऐसा शानदार प्रदर्शन फिर कभी देखने को नहीं मिला।  

        जहां तक पुरुष टीम की  बात है तो ओलम्पिक स्वर्ण जीतना कभी हंसी खेल जैसा था।  लेकिन बाद के सालों में ओलम्पिक खेलने के भी लाले पड़ने लगे और तमाम तिकड़में लगा कर ही ओलम्पिक भागीदारी सम्भव हो  पाती है।  हॉकी इंडिया ने अगले साल होने वाले कॉमनवेल्थ खेलों में टीम नहीं उतारने का फैसला किया है और पूरा ध्यान एशियाई खेलों पर है ताकि विजेता बन कर सीधे ओलम्पिक का टिकट पा सके।   बेशक, भारतीय हॉकी के करता धरता आत्मविश्वास से भरे हैं और बड़े बड़े ख्वाब देख रहे है।  उन्हें लगता है कि हमारी हॉकी सही ट्रैक पर चल निकली है।  लेकिन यह याद रखें कि पहले ही मुकाबले में सात गोलों से हारने वाली टीम की  वापसी जैसे चमत्कार हमेशा नहीं होते।  

         हॉकी जानकारों के अनुसार जापान का कोरोना पीड़ित माहौल, ज्यादातर टीमों में स्टार खिलाडियों की अनुपस्थिति और मेजबान देश का मौसम, ऐसे कारण हैं जिनसे  मैचों के नतीजे तय हुए।  शायद पेरिस में हालत बेहतर हो सकते हैं, जिनका लाभ यूरोपीय टीमों को मिलना तय है।  भारतीय हॉकी के लिए यही बेहतर रहेगा कि धैर्य धरें और अपने आलोचकों को करारा जवाब दें।  फिलहाल गलत फहमी पालने का वक्त नहीं है।  अपना श्रेष्ठ दें और एक और कदम आगे कि तरफ बढ़ाएं।  
असली परीक्षा तो पेरिस ओलंम्पिक में ही होगी। तब तक ऊंची उड़ान ठीक नहीं होगी।




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