प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्राl भारत की वैश्विक कूटनीतिक सफलता

संजीव ठाकुर, चिंतक, लेखक, | पब्लिक एशिया
Updated: 25 Sep 2021 , 16:29:23 PM
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कोरोना संक्रमण काल के दौरान प्रधानमंत्री की बांग्लादेश की संक्षिप्त यात्रा के बाद अमेरिका की यात्रा कई मामलों में अत्यंत महत्वपूर्ण हैl इस दौरान वैश्विक घटनाक्रम बदला है, और अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों का कब्जा हो गयाl भारत के लिए यह अप्रत्याशित नहीं थाl पर अमेरिका ने अफगानिस्तान को तालिबानी आतंकवादियों से भयभीत होकर छोड़ना अमेरिका को वैश्विक नेतृत्व के अधिकार से वंचित करता हैl 24 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति की वन टू वन बैठक होने वाली है। और अफगानिस्तान के माध्यम से चीन की बढ़ती ताकत को और ग्लोबल टेररिज्म को समाप्त करने और एक्रॉस दी बॉर्डर आतंकवाद को समूल नष्ट करने के संबंध में दोनों नेता बातचीत करेंगे।


यह भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमला हैरिस उपराष्ट्रपति अमेरिका ऑस्ट्रेलियाई, जापानी मुखियाओं और भारत देश में ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने के लिए चार बड़ी कंपनियों के सीईओ से महत्वपूर्ण व्यवसायिक बातें भी की। भारत के लोगों के साथ पूरे विश्व के देशों की निगाहें नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति पर लगी हुई है। शायद वैश्विक आतंकवाद पर कोई बड़ा हल निकल कर सामने आए। अमेरिका चीन से निपटने हेतु अपनी वैश्विक नेतृत्व की भूमिका को सिर्फ स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन की सोच तथा नीतियों में बड़ा परिवर्तन है। ट्रंप विश्व की अगुवाई करने के इच्छुक नहीं थे,पर वर्तमान राष्ट्रपति वैश्विक अगुवाई के प्रणेता बनना चाहते हैं। भारत के अमेरिका से पूर्व से भी संबंध अच्छे थे। वर्तमान में काल एवं परिस्थिति को देखते हुए ज्यादा गहरे हो गए हैं।


भारत में वैश्विक नेतृत्व करने की पूरी क्षमता है। क्योंकि भारत के साथ शांति संदेश का एक अमोघ अस्त्र भी है। 24 सितंबर को इसमें कोई भ्रम नहीं है कि भारत के प्रधानमंत्री ऐसे राष्ट्रपति से मिल रहे हैं, जिनका पूरा ध्यान एवं शक्ति चीन की बढ़ती ताकत को रोके जाने पर है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति विशेषज्ञों का माने तो भारत के पास अमेरिकी राष्ट्रपति से आगे जाने का सुनहरा अवसर है, और इसे भारत के प्रधानमंत्री खोना नहीं चाहेंगे। एक अमेरिकी विशेषज्ञ ने कहा कि भारत जानता था कि अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी तय है। अमेरिका अफगानिस्तान को बेहतर और अफगानिस्तान के आवाम के लिए सुरक्षित तरीके से अफगानिस्तान को छोड़ सकता था। ऐसे में ईतना खून खराबा एवं मृत्यु नहीं होती। एशिया में ड्रैगन के दबदबे को कम करने के लिए सामरिक तौर पर भारत एक महत्वपूर्ण भौगोलिक देश है। भारत तथा अमेरिका के कुछ मुद्दों को लेकर असहयोग होने के बावजूद दोनों देश स्वाभाविक मित्र बन गए हैं। दोनों देशों के लिए चीन पाकिस्तान और तालिबान की एकता एक बड़ा चिंताजनक पहलू हो सकता है। भारत के लिए यह एक बड़ी असुरक्षा का संदेश है। यह सर्वविदित है कि अमेरिका के राष्ट्रपति और वहां की जनता की रुचि अफगानिस्तान में बिल्कुल नहीं है, पर भारत के लिए यह सामरिक चिंता का विषय है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति को कट्टरपंथी आतंकवाद के खिलाफ रूचि पैदा करने का प्रयास जरूर करेंगे। भारत के प्रधानमंत्री के पूर्व राष्ट्रपतियों बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप से व्यक्तिगत संबंध और केमिस्ट्री बड़ी अच्छी थी। पर अब तक वर्तमान राष्ट्रपति के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक भी मुलाकात ना होने से दोनों अभी मुखर नहीं हुए हैं, और ना ही वर्तमान राष्ट्रपति अमेरिका ने व्यक्तिगत रूप से कोई रुचि दिखाई है। पर उम्मीद की जाती है कि अमेरिकी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री के देशों की संयुक्त हितों के संबंध में एक मत हो सकते हैं।


अमेरिका के सैनिडियागो स्टेट यूनिवर्सिटी की अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा संघर्ष मामले की प्रमुख प्रोफेसर लता वर्धराजन के अनुसार अफगानिस्तान में अमेरिका बुरी पराजय के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति को वैश्विक नेतृत्व की तरफ ध्यान देना ही होगा, तब जाकर वैश्विक कट्टरवाद एवं आतंकवाद की समस्या का हल निकलने की समस्त संभावनाएं बनेंगी। अफगानिस्तान में चीन पाकिस्तान और तालिबान वैश्विक परिदृश्य में अलग-थलग पड़ गए हैं। पूरा विश्व के एक तरफ हो गया। भारत की चिंता जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को लेकर है। अफगानिस्तान जैसे ही अपने शासन प्रशासन से मुक्त होगा। पाकिस्तान को गुरु दक्षिणा के रूप में जम्मू कश्मीर में आतंकवाद फैलाने का प्रसाद जरूर चढ़ाने की कोशिश करेगा। भारत अकेला ना पड़ जाए इसके लिए उसे मित्र देशों की आवश्यकता पड़ेगी ही पड़ेगी, इस तरह भारत को हर तरह से महफूज होने के लिए कूटनीतिक चालों के कदम को फूंक फूंक कर रखना होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति से 50 मिनट की वार्ता में भारत और अमेरिका के मध्य अफगानिस्तान मामला बाकी मुद्दों पर हावी होने की संभावना नजर आ रही है।


इन परिस्थितियों में यदि अमेरिका भारत का साथ देता है, तो यह बात भारत के पक्ष में ही जाएगी। पर दूसरी तरफ भारत का परंपरागत मित्र रूस के नाराज होने की संभावना भी बलवती हो सकती है। अब ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो भविष्य ही तय कर पाएगा। पर भारत के प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा दूरगामी परिणाम लाने वाला है, एवं इसे सामरिक तथा कूटनीतिक विशेषज्ञ भारत की कूटनीतिक जीत और पाकिस्तान की बड़ी हार के रूप में देख रहे हैं।





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