फिटकिरी के गजानन ,करेंगे नदी तालाब जलाशय को साफ

डॉक्टर रामानुज पाठक | पब्लिक एशिया
Updated: 07 Sep 2021 , 17:38:56 PM
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इस साल गणेश चतुर्थी 2021 का पावन पर्व 10 सितंबर 2021 को शुक्रवार के दिन पड़ रहा है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मध्याह्न काल गणेश पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। इस दौरान विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा अर्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और कष्टों का निवारण होता है।विघ्न विनाशक, गणेश उत्सव महाराष्ट्र सहित सम्पूर्ण भारत में बड़े उत्साह और उमंग से मनाया जाता है।

जगह जगह गणेश जी की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और पूरे  दस  दिन उनकी विधि विधान से पूजा अर्चना और आराधना की जाती है,साथ ही सबके मंगल की कामना की जाती है।अभी कोरोना महामारी का दौर पूरी तरह से समाप्त नही हुआ है अतः सामाजिक दूरी का पालन करने और कोरोना प्रोटोकाल का पालन करते हुए गणेश उत्सव मनाने हेतु केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने एडवाइजरी जारी की है।उत्सव मानव जीवन के अभिन्न अंग है और अपने ईस्ट की अभ्यर्थना आराधना करने का विशेष अधिकार भी हम सब को संविधान प्रदत्त है।

इसमें कोई रोक टोक ना कभी लगी है और ना ही प्रतिबंध  लगाए जा सकते हैं।दरअसल जब हमारी उत्सवधर्मिता भौंडेपन का रूप धारण करने लगती है तभी मुश्किलें बढ़ती है।पहले बहुत कम गणेश प्रतिमाएं स्थापित होती थी तो मुझे लगता है कि ज्यादा भक्ति और उपासना होती थी ज्यादा श्रद्धा भाव था ।अब जब गली गली या ये कहें घर घर गणेश जी की प्रतिमाएं विराजमान हो रहीं हैं तो कहीं ना कहीं श्रद्धा भक्ति कम हो रही है दिखावा ज्यादा हो रहा है।बहरहाल ये तो एक पक्ष था आम जन के मन में पर्यावरण प्रदूषण का डर दिखाकर गणेश उत्सव की मनाही करने का लेखक का कोई ना तो अधिकार है और ना ही कोई उद्देश्य है।

दरअसल देवी देवताओं के पूजन अर्चन की परिपाटी भारत में अनादिकाल से चली आ रही है वो चलनी भी चाहिए।किंतु गणेश चतुर्थी के दिन जब गणेश प्रतिमाएं विसर्जित कर दी जाती हैं तो निश्चित रूप से कुंआ तालाब जलाशय नदी का जल खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो जाता है।क्या अधिकांश प्रकृति प्रेमी और अपने आप को सभ्य समाज के कहने वाले लोग अपना कर्तव्य नहीं मानते हैं कि गणेश प्रतिमाएं जो किसी जलस्रोत में विसर्जित की जाती हैं तो उससे जल में पैंट,वार्निश,लकड़ी,भूसा,कपड़े ,खतरनाक रंग मिल कर जल की गुणवत्ता को बहुत ज्यादा दूषित कर देते हैं अगर विकल्पतः फिटकिरी के गणेश जी बनाएं जाएं जिसमे  पैंट ,वार्निश,  लकड़ी, मिट्टी ,और  भूसा ,चारा,खतरनाक रंग नहीं होंगे । फिटकिरी एक प्राकृतिक जलशोधक है एंटीसेप्टिक गुण होते हैं अगर गणेश प्रतिमाएं फिटकिरी की बनाई जाएंगी तो हमारी उत्सव धर्मिता भी अप्रभावित रहेगी तथा गणेश प्रतिमाएं जब विसर्जित की जाएंगी तब जल में कोई खतरनाक रसायन नहीं मिलेंगे ।

फिटकिरी की गणेश प्रतिमाएं एक ओर सस्ती होंगी निर्माण में समय कम लगेगा और पर्यावरण हितैषी भी होंगी। फिटकिरी जल में पूर्णतः विलेय है रसायनिक रूप से यह द्विक लवण है पोटाश एलम के नाम से भी जाना जाता है इसमें पोटैशियम सल्फेट और एल्यूमीनियम सल्फेट तथा जल के अणु होते हैं इससे बहुत सारी औषधियों का निर्माण भी होता है।गणेशजी की मूर्ति के सांचे में फिटकरी डाली जाती है। इसके लिए 120 डिग्री पर फिटकरी को गर्म किया जाता है। फिर सांचे में डाला जाता है।

उसके बाद मूर्ति बनाई जाती है।विनायक , लम्बोदर,गजानन,एकदंत फिटकिरी की मूर्तियों से और अधिक प्रसन्न होकर वरदान देंगे इसलिए सभी प्रकृति प्रेमी भक्तों से अनुरोध है,मूर्तिकारों से अनुरोध है कि अबकी बार फिटकिरी के गजानन महाराज।हे एकदंत विनायकं तुम हो जगत के नायकं।





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