फुटबाल उत्तराखंड:फेडरेशन और यूपी की गन्दी राजनीति की शिकार

राजेंद्र सजवान | पब्लिक एशिया
Updated: 26 Nov 2021 , 13:39:28 PM
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 इसमें दो राय नहीं कि भारतीय फुटबाल अपने सबसे शर्मनाक दौर से गुजर रही है। जो देश कभी फ़्रांस, इटली, जापान चीन कोरिया, ऑस्ट्रेलिआ जैसे देशों की फुटबाल को कड़ी टक्कर देता था उसे 'सैफ' समुदाय के कुछ फिसड्डी देशों में ही सम्मान प्राप्त है । फुटबाल जानकार, पूर्व खिलाड़ी  और कोच मानते हैं की भारतीय फुटबाल को बर्बाद करने की दोषी फुटबाल फेडरेशन है।  इसी प्रकार देश के तमाम प्रदेशों की फुटबाल के हत्यारे  राज्य फुटबाल संघ बताए जा रहे हैं।   एक दौर वह भी था जब बंगाल, पंजाब, गोवा, केरल, आंध्रा, महाराष्ट्र जैसे प्रदेशों के बीच उत्तराखंडी ( तब यूपी ) खिलाडियों का जादू भी सर चढ़ कर बोलता था।  लेकिन आज उत्तराखंड के खिलाडी भारतीय  फुटबाल फेडरेशन और राज्य फुटबाल एसोसिएशन के नाकारपन कि  सजा भुगत रहे हैं। 

      1970 -80 के दशक में जब भारतीय फुटबाल शिखर से नीचे धसक रही थी तब गोरखा ब्रिगेड के खिलाडियों ने अपने जौहर से तमाम टॉप क्लबों को हैरान किया। मोहन बागान, ईस्ट बंगाल, जेसीटी, सीमा बल और देश के सभी नामी क्लब गोरखा ब्रिगेड से खौफ खाते थे, जिसका हेड क्वार्टर देहरादून था।  कुछ साल बाद बीइजी रुड़की , गढ़वाल राइफल जैसी टीमों ने उत्तराखंड की फुटबाल का गौरव बढ़ाया, जिनके देखा देखी पौड़ी , टिहरी, कोटद्वार, लैंस डाउन, देहरादून , उत्तरकाशी, चमौली, उत्तरकाशी, नैनीताल, हल्द्वानी  में फुटबाल अपने पूरे चरम पर थी। लगभग सभी जिलों में कई बड़े टूर्नामेंट खेले जाते थे। लेकिन तत्कालीन उत्तरप्रदेश की गन्दी खेल राजनीति और नेताओं की बुरी नजर ने  उत्तरांचल की फुटबाल की हवा निकाल कर रख दी। 

        कुछ दशक पहले तक देहरादून पहाड़ की फुटबाल का केंद्र था और दून  हीरोज दून  वेळी , जिप्सी क्लब, विजय कैंट स्पोर्टिंग, गढ़वाल स्पोर्टिंग  जैसे क्लब अस्तित्व में थे, जिनसे निकल कर अनेकों खिलाडी देश के बड़े क्लबों की शान बने। हालाँकि गढ़वाली, गोरखा और कुमांउनी खिलाडियों से सजे कलबों  का पतन भारतीय फुटबाल की बर्बादी के साथ ही शुरू हो गया था लेकिन 2000  में अलग राज्य का गठन बड़ा अभिशाप साबित हुआ।  भले ही यूपी से अलग होकर उत्तराखंड ने चैन की सांस ली लेकिन उत्तरप्रदेश की फुटबाल की गंदगी नये प्रदेश की फुटबाल को पूरी तरह निगल गई। 

        उत्तराखंड की फुटबाल का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है की उसे आज भी उन लोगों की चाकरी करनी पड़  रही है जिन्हें यूपी की फुटबाल का हत्यारा माना जाता है। हैरान वाली बात यह है कि अलग राज्य बने 21 साल से अधिक समय हो चुका है लेकिन फुटबाल सहित तमाम खेलों में यूपी वाला गुंडाराज चल रहा है। स्थानीय खिलाडी और कोच अपना दुखड़ा रोयें तो किसके आगे? पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार कुछ अपने गद्दार प्रदेश कि फुटबाल को पनपने नहीं दे रहे।  गोरखा ब्रिगेड के स्थान परिवर्तन और खिलाडियों के मफतलाल ग्रुप जे जुड़ने के बाद पहाड़ कि फुटबाल बुरी तरह प्रभावित हुई और पनप  नहीं पाई। 

         देश कि राजधानी दिल्ली कि फुटबाल में गढ़वाल हीरोज, उत्तराखंड एफसी, गढ़वाल डायमंड और उत्तरांचल हीरोज जैसे क्लब बड़ी पहचान बनाए हैं, जिनमें बहुत से उत्तराखंडी खिलाडी खेल रहे हैं।   लेकिन उत्तराखंड में अपने खिलाडियों के लिए जैसे कोई जगह नहीं बची।  जिस प्रदेश में कभी देश के टाप खिलाडी खेलने आते थे, उसके अपने खिलाडी दर बदर हैं और हजारों फुटबाल प्रेमियों को आकर्षित करने वाले आयोजन ठप्प  हो गए  हैं।




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