बदलती पीढ़ी बदलते सँस्कार,कहा गया लोगो मे प्यार और मिठास

डॉ फलकुमार | पब्लिक एशिया
Updated: 11 Nov 2021 , 18:27:54 PM
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बदलती पीढ़ी बदलते सँस्कार, कहा गया लोगो मे प्यार और मिठास, क्या कभी भूल पाओगे, चलो बुढ़ापे से बचपन की ओर जो 50 वर्ष को पार कर गए हैं या करीब है, उनके लिए यह कुछ खास अनुभव होगा ।

मेरा मानना है कि दुनिया में जितना बदलाव 50 के पार या उस के करीब की पीढ़ी ने देखा है शायद इसके बाद किसी पीढ़ी को इतना बदलाव देख पाना संभव हो सके, 50 के पार वह आखिरी पीढ़ी है। उसने बैलगाड़ी से लेकर सुपरसोनिक जेट देखें, बैरंग से लेकर लाइव चैट तक देखा है, और वर्चुअल मीटिंग जैसे असंभव लगने वाली बहुत सी बातों को संभव होते देखा है जिन्होंने कई बार मिट्टी के घरों में बैठकर परियों और राजाओं की कहानी सुनी है,उन्होंने जमीन पर बैठकर खाना खाया है,कप से प्लेट में डाल डाल कर चाय पी है, जिन लोगो ने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ परंपरागत खेल जैसे गिल्ली डंडा, छुपा छुपी, खो खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं,जो चांदनी रात में डिबरी लानटेन या बल्ब की पीली रोशनी में होमवर्क किया है और दिन के उजाले में चादर के अंदर छिपकर नोबेल पड़े हैं जिन लोगो ने अपनों के लिए अपने जज्बात खतों में आदान-प्रदान किए हैं, और उन खतों को पहुंचाने और जवाब के वापस आने में महीनों का इंतजार किया है,

जिन्होंने कूलर, एसी या हीटर के बिना ही बचपन गुजारा है, और बिजली के बिना भी गुजारा किया है, जो अक्सर अपने छोटे बालों में सरसों का ज्यादा तेल लगाकर स्कूल और शादियों में जाया करते थे, जिन्होंने स्याही वाली दवात या पेन से काफी किताबें कपड़े और हाथ काले नीले किए हैं। तख्ती पर घोटा लगाकर सेठे की कलम से लिखा है, और तख़्ती धोई है,जिन्होंने अध्यापकों से मार खाई है, और घर में शिकायत करने पर फिर घरवालों से मार खाई है, जो मोहल्ले के बुजुर्गो को दूर से देख कर नुक्कड़ से भागकर घर आ जाया करते थे, और समाज के बड़े बूढ़ों की इज्जत डरने की हद तक करते थे, जिन्होंने अपने स्कूल के सफेद कैनवास शूज पर खड़िया का पेस्ट लगाकर चमकाया है जिन्होंने गुड़ की भी चाय पी है काफी समय तक सुबह का लाया लाल दंत मंजन या सफेद कोलगेट टूथ पाउडर इस्तेमाल किया है, और कभी-कभी तो नमक से या लकड़ी के कोयले के साथ कीकर की लकड़ी (दातुन) से दांत साफ किए हैं, जिन्होंने चांदनी रातों में रेडियो पर बीबीसी की खबरें विविध भारती, ऑल इंडिया रेडियो बिनाका गीतमाला और हवा महल जैसे प्रोग्राम पूरी शिद्दत से सुने हैं जब हम लोग गर्मियों में शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव करते थे उसके बाद सफेद चादर बिछा कर सोते थे, स्टैंड वाला पंखा सबको हवा के लिए हुआ करता था। सूरज निकलने के बाद भी ढिट बने सोते रहते थे, 
लेकिन अब वह दौर बीत गया,

चादरे अब नहीं बिछा करती,डिब्बे जैसे कमरे में कूलर एसी के सामने रात होती है,वही दिन गुजरता हैं,जिन्होंने वो खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग देखे हैं, वह लगातार कम होते चले गए अब तो लोग जितना पढ़ लिख रहे हैं, उतना ही खुदगर्जी, बे मुरव्वत, अनिश्चितता, अकेलापन वह निराशा में खोते जा रहे हैं, जिन्होंने रिश्तो की मिठास महसूस की है, हम इस दुनिया के वह लोग भी हैं जिन्होंने एक ऐसा अविश्वसनीय सा लगने वाला नजारा देखा है, आज के इस कोरोना काल में परिवारिक रिश्तेदारी हो बहुत से पति-पत्नी बाप बेटा,भाई, बहन आदि को एक दूसरे को छूने से डरते हुए भी देखा है पारिवारिक रिश्तेदारों की तो बात क्या करें, खुद आदमी को अपने ही हाथ से अपने नाक और मुंह को पूछने से डरते हुए देखा है, अर्थी को बिना चार कंधे के शमशान घाट पर जाते देखा है, पार्थिव शरीर को दूर से ही दूसरे लोगो के द्वारा अग्नि दाग लगाते हुए देखा है, भारत की एकमात्र वह पीढ़ी है, जिसने अपने मां-बाप की बात भी मानी और अब बच्चों की भी मान रहे हैं शादी के खाने में वह आनंद नहीं जो पंगत में आता था जैसे सब्जी देने वाले को गाइड करना, हिला कर देना या तरी तरी देना, पूरी छांट-छाँट के और गरम-गरम लेना, पीछे वाली पंगत में झांक कर देखना क्या आ गया अपने इधर क्या बाकी है, और जो बाकी है उसके लिए आवाज लगाना पास वाले रिश्तेदार के पत्तल में जबरदस्ती पूरी रखवाना रायते वालों को दूर से आता देख कर फटाफट रायते का दोना पीना,पहले वाली पंगत कितनी देर में उठेगी उसके हिसाब से बैठने की पोजीशन बनाना, और बाद में पानी वाले को खोजना, कुछ सभ्यताओं के साथ-साथ सब कुछ बोलते और छोड़ने जा रहे हैं, 50 वर्ष पहले के इंसान में कितना प्यार और सम्मान था, लेकिन आज की युवा पीढ़ी में सब कुछ बदलने के साथ धुंधला सा हो गया है।




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