बलदेव का ऋण महिला हॉकी कभी नहीं चुका सकती

राजेंद्र सजवान | पब्लिक एशिया
Updated: 12 Nov 2021 , 19:27:11 PM
  • Share With



 भले ही सरकार हर साल द्रोणाचार्य अवार्डों की बंदरबांट कर रही है, जिनमें से  कभी कभार कुछ अच्छे और सच्चे कोच भी सम्मान पा जाते  हैं लेकिन कुल मिला कर असली  भारतीय खेल गुरुओं को इस देश ने कभी भी वह सम्मान नहीं दिया जिसके वे हकदार बनते हैं| द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित महान गुरुओं में  रहीम साहब, गुरु  हनुमान, नाम्बियार, इलियास बाबर, आचरेकर  और कई बड़े नाम शामिल किए जा सकते हैं।  लेकिन इन नामों के बीच यदि सरदार  बलदेव सिंह को शामिल किया जाए तो ज्यादातर हॉकी प्रेमी नाक भौं सिकोड़ सकते हैं।

       कई लोग यह  भी पूछेंगे की  भला यह बलदेव  क्या बला है और इसे क्योंकर भारत के महानतम कोचों में स्थान दिया जा रहा है? बलदेव का परिचय यह है की यह महाशय भारतीय खेल प्राधिकरण के हॉकी कोच थे और हाल ही में सेवानिवृत हुए हैं। यह भी माना जाता है की उस समय जबकि राजबीर  कौर राय, मधु यादव, सीता गोसाईं, प्रीतम ठाकरान जैसी जानी मानी महिला खिलाडी अपनी हॉकी स्टिक टांगने के करीब थीं तब अचानक ही बलदेव महिला हॉकी की संजीवनी बन कर प्रकट हुए और हमेशा हमेशा के लिए भारतीय महिला हॉकी के महानतम कोच बन गए। 

      इनके बारे में यह भी मशहूर है की इन्होने  ताउम्र लड़कियों के साथ बदसलूकी की,  उन्हें भद्दी भद्दी गलियां दीं, सरे आम खुले मैदानों में  पीटा और  ऐसी पड़ताड़ना दी जिसे देख कर कोई भी तौबा कर जाए। फिरभी सरकार ने इन्हें द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित किया। यहां भी बहुत से लोग उसके विरोध में थे लेकिन जो काम उसने महिला हॉकी के लिए किया बहुत कम गुरु कर पाए हैं। शायद गुरु हनुमान ही उनमें से एक हो सकते हैं।

        बलदेव वह कोच है जिसके कारण हरियाणा और देश भर की कई महिला हॉकी खिलाडियों के घर के चूल्हे जलते हैं। वह ऐसे माता पिता का आदर्श रहा जिसने बेटियों को पीट पीट कर सिखाया और इस काबिल बनाया की देश ने उन्हें अर्जुन, पद्म श्री, खेल रत्न जैसे सम्मान दिए। तब माता पिता उसे अपना भगवान् मानते थे। उसकी पिटाई और गलियों को प्रसाद बताते थे।  लेकिन जब बेटियो को बड़ी नौकरियां और सम्मान मिला तो गुरु को भुला दिया। बलदेव को इस बात पर हैरानी है की उनकी कुछ ट्रेनी मीडिया के सामने अपना दुखड़ा रोते हुए कहती हैं की मां बाप ने गरीबी में  पाल पोश कर  बड़ा किया, टूटी हॉकी से खेलती थीं। बड़े सम्मान मिलने पर उन्होंने अपने गुरु को भुला दिया है।  इसलिए क्योंकि उसने प्रसिद्धि पाने वाली लड़कों को राह भटकने से बचाया। 

      शुरूआती दौर में बलदेव ने लड़कों को भी सिखाया पढ़ाया, जिनमें से कुछ एक हरियाणा के उच्च पदों पर विराजमान हैं।  लेकिन जल्दी ही  पुरुष हॉकी खिलाडियों से मोह भंग होने लगा और उसने अपना अधिकाधिक ध्यान महिला खिलाडियों पर देना शुरू कर दिया| हरियाना  के एक नामी खिलड़ी को उसने इसलिए अकादमी से चलता किया क्योंकि वह माहौल बिगाड़ रहा था। भले ही वह आज प्रदेश में चर्चित नाम है लेकिन बलदेव उसे और कुछ महिला खिलाडियों की शक्ल तक नहीं देखना चाहता। 

       हरियाणा के शाहबाद मारकंडा स्थित गुरु नानक प्रीतम गर्ल्स स्कुल उसकी कर्म स्थली रहा और जैसे ही बलदेव ने देहाती और निम्न वर्ग के तबके की लड़कियों को सिखाने पढाने का काम शुरू किया भारतीय हॉकी में शाहबाद का नाम अमर हो गया। बेशक, यदि आज महिला हॉकी में शाहबाद ने श्रेष्ठ स्थान पाया है तो पूरा श्रेय बलदेव , उसके अनुशासन, बदमिजाजी और उसकी क्रूरता को जाता है। लेकिन उसकी कोचिंग का सिक्का ऐसा चला कि जहां देखो शाहबाद और बलदेव नजर आए।  राष्ट्रीय सीनियर, जूनियर, भारतीय रेलवे, हरियाणा  और भारतीय राष्ट्रीय टीम में शाहबाद  की लडकियां छा गईं।

      पिछले पच्चीस सालों से यह सिलसिला लगातार चल रहा है बलदेव की तैयार की गई लड़कियां भारतीय महिला हॉकी की पहचान बन गईं|। ऐसे भी मौके आए जब पूरी की पूरी भारतीय टीम बलदेव इलेवन के नाम से जानी गई। लेकिन बलदेव उन खिलाडियों का प्रिय कोच नहीं बन पाया, जिनका करियर बलदेव की देन  है, जिनके परिवार मजदूरी और ठेला लगाने, ऑटो चलाने, खेतों में दिहाड़ी करने  से ऊपर उठ गए|। ऐसी अहसान फरामोश खिलाडी और उनके मां बाप अब बलदेव का नाम तक नहीं लेते। 




रिलेटेड न्यूज़

टेक ज्ञान