बड़े नाम वाले निशांचियों को कब तक झेलते रहेंगे

राजेंद्र सजवान | पब्लिक एशिया
Updated: 03 Oct 2021 , 20:14:40 PM
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            टोक्यो ओलम्पिक में जिन भारतीय खेलों ने देश का नाम सबसे ज्यादा खराब किया है उनमें निशानेबाज और तीरंदाज सबसे आगे रहे हैं। हालाँकि हार जीत खेल का हिस्सा हैं और किसी खिलाड़ी की हार से देश का  नाम   खराब होने जैसा असर नहीं पड़ता । लेकिन ओलम्पिक जैसे आयोजन में ढोल नगाड़ों के साथ जाना, पदक लूट लेने का दावा करना और फिर मुंह लटका कर वापस आना अखरता है।  

            अभी ओलम्पिक के घाव भरे भी नहीं थे कि  शीर्ष तीरंदाज फिर किसी विश्व कप  से खाली हाथ लौट आए हैं तो ओलम्पिक से हार कर लौटे कुछ निशानेबाज अब जूनियर स्तर के  आयोजनों में शेखी बघारने के लिए भेजे जा रहे है। अर्थात फिर वही खेल शुरू हो गया है,  जिसके चलते तीरंदाज  और निशानेबाज हर ओलम्पिक से  खाली लौट आते है।  जिस निशानेबाजी को अभिनव बिंद्रा, गगन नारंग, विजय कुमार जैसे निशानेबाजों ने गौरव प्रदान किया उसमें अब दम नजर नहीं आता।  

          अगर किसी खेल में सही नतीजे नहीं आ रहे तो जान लीजिए कि कहीं ना कहीं  कुछ गड़बड़ जरूर है।  खिलाड़ियों और खेल जानकारों से पूछें तो उनके अनुसार दोनों खेलों का नियंत्रण सही हाथों में नहीं है। तीरंदाजी पिछले चालीस सालों से सब्जबाग दिखाने  के आलावा कुछ भी नहीं दे पाई। जो तीरंदाज एशियाड में ही पदक नहीं जीत पाते उनसे भला ओलम्पिक पदक की उम्मीद क्यों करनी चाहिए? सवाल यह पैदा होता है कि भारतीय निशानेबाज और तीरंदाज नाना प्रकार के विश्व स्तरीय आयोजनों में चैम्पियन कैसे बन जाते हैं?

          टोक्यो से हार कर लौटे निशानची जूनियर  विश्व  मुकाबलों   में सफलता अर्जित कर रहे है।  यह भी पूछा जा रहा हैकि  इन कागजी  शेरों   को ओलम्पियन का तमगा लगने के बाद जूनियर में क्यों उतारा जाता हैं? भले ही उनकी उम्र छोटी हो लेकिन ऐसा कतई नहीं होना चाहिए।  उनके स्थान पर अन्य उभरते तीरंदाजों और निशानेबाजों को भेजा जाना बेहतर रहेगा ताकि भविष्य के खिलाडी तैयार किए जा सकें।  खेल पंडितों कि राय में अब बहुत हो लिया जिन खिलाडियों पर देश का करोड़ों खर्च हुआ है उनको विश्राम देना ही बेहतर रहेगा।  

          जिस  प्रकार एक  महिला मुक्केबाज ने कई उभरती प्रतिभाओं का रास्ता रोके रखा उसी प्रकार का  माहौल निशानेबाजी  और तीरंदाजी में भी देखने को मिल रहा है।  फर्जी और प्रयोजित विश्व कप और विश्व चैम्पियनशिप में भाग लेकर कब तक देश को बरगलाते रहेंगे।  यही मौका है जब खेल मंत्रालय यह पूछ सकता कि आखिर तीरंदाजी और निशानेबाजी में कितनी मान्यता प्राप्त विश्व चैम्पियनशिप होती हैं? यदि उन सभी में भाग लेना जरूरी है तो जूनियर खिलाड़ियों को भेजना बेहतर रहेगा। 




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