भारतीय संस्कृति में संचार के अनेक सूत्र : डॉक्टर साकेत रमण

संवाद सहयोगी, | पब्लिक एशिया
Updated: 03 Sep 2021 , 19:08:55 PM
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मेरठ। डॉ साकेत रमण ने कहा कि हमारे संचार के बहुत से माध्यम वैदिक काल से हैं, लेकिन हमने यह मान लिया कि पश्चिम में जो लिखा गया या किया गया वही संचार का माध्यम था । जबकि हमारे यहां ब्रह्म नाद संचारण अक्षर अनेको अवधारणाएं वैदिक काल से मौजूद है जैन संचार परंपरा बौद्ध संचार परंपरा भी हमारी पुरातन काल से मौजूद है। लेकिन हम मानसिक गुलामी में आज भी जी रहे हैं। भारतीय संस्कृति अनेक शोध विज्ञान आदि की जननी रही है।

यह बात पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित संगोष्ठी में महात्मा गांधी केंद्रीय महाविद्यालय मोतिहारी से आए डॉ साकेत रमण ने कही। डॉ साकेत रमण ने कहा कि हम आज भी मानसिक गुलामी के दौर में जी रहे हैं हमने पाश्चात्य सिद्धांतों के संचार मॉडल और सिद्धांतों को प्रमुखता दी परंतु प्राचीन भारतीय संचार सिद्धांतों को महत्व नहीं दिया भरत मुनि की संचार अवधारणा रस,भाव ,छंद आदि के महत्व को नहीं समझा हम कालिदास को भारत का शेक्सपियर कहते हैं जबकि कालिदास शेक्सपियर से सदियों पूर्व जन्म में थे।

भारतीय संस्कृति में संचार के कई क्षेत्र हैं महाभारत इसका साक्षात उदाहरण है हमने अपनी मौलिक परंपराओं को छोड़ दिया संचार की विद्या को लेकर कोई सार्थक कार्य नहीं किया हमे जो मिला वही अपनाया संचार के सूत्र प्रारंभ काल से ही भारतीय संस्कृति में स्थापित है लेकिन हमने पश्चिम की सभ्यता को माना व अपनाया कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के निदेशक प्रोफेसर प्रशांत कुमार ने कहा कि यदि संचार को समझना है तो भारतीय संस्कृति को समझना होगा वेद उपनिषद रामायण महाभारत आदि को पढ़ना होगा तब हमें समझ में आएगा कि भारतीय संस्कृति में संचार की परंपरा प्राचीन काल से है भारतीय संस्कृति हमेशा से श्रेष्ठ रही है।

प्रोफेसर प्रशांत कुमार ने सभी का स्वागत किया जब्ती डॉ मनोज कुमार श्रीवास्तव ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया मंच का संचालन सौम्या ने किया। योगेश नरेश संभव भारत अधाना अंशराज अविनाश आदि का विशेष सहयोग रहा इस दौरान अमरीश पाठक प्रशासनिक अधिकारी मितेंद्र कुमार गुप्ता राकेश कुमार रूपेश दीक्षित ज्योति वर्मा राजीव नाजर आदि मौजूद रहे।




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