भारतीय हॉकी को पहला सबक,दूसरा सबक घमंड तोड़ सकता है

राजेंद्र सजवान | पब्लिक एशिया
Updated: 25 Nov 2021 , 16:24:30 PM
  • Share With



 भारतीय  जूनियर हॉकी टीम यदि पहले मुकाबले में हार गई तो कोई बड़ा अनर्थ नहीं हो गया। खेल है और खेल में हार जीत होती रहती  है', हॉकी इंडिया और उसके कुछ घोर अनुयायी ऐसा कह रहे हैं।  दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें देश में हॉकी का कारोबार चलाने वालों के खिलाफ बोलने के लिए कोई मसाला चाहिए था जोकि युवा खिलाडियों ने फ्रांस से पहला मैच हार कर दे दिया है। एक समय भारत पर बड़ी हार का खतरा मंडरा रहा था लेकिन जैसे तैसे 4-5 की हार थोड़ी सम्मानजनक कही जा सकती है। 

     हालाँकि भारत को अभी  अपने ग्रुप में कनाडा और पोलैंड के विरुद्ध खेलना है और दोनों मुकाबले जीत कर मेजबान  और पिछला विजेता फिर से रफ़्तार पकड़ सकता है। यह कहना भी जल्दबाजी होगी कि भारतीय टीम की तैयारी में कोई कमी रह गई है।  लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि जो टीम अपने मैदान, अपने दर्शकों के सामने अपेक्षाकृत कमजोर माने जाने वाले प्रतिद्वंद्वी से पिट गई,  उसके बारे में सोचना तो पडेगा।  उधर भरतीय हॉकी के खैर ख़्वाह कह रहे हैं कि ओलम्पिक में भारत अपना पहला मैच ऑस्ट्रेलिआ से सात गोलों से हार गया था लेकिन टीम ने वापसी की और शानदार प्रदर्शन करते हुए कांस्य पदक जीत दिखाया। जूनियर खिलाड़ी भी ऐसा कर सकते हैं। 

       टूर्नामेंट की शुरुआत से पहले कुछ पूर्व खिलाडियों और टोक्यो ओलम्पिक में पदक विजेता रहे खिलाडियों ने डंके की चोट  पर मेजबान के खिताब जीतने का दावा किया था। शायद पहले मैच के परिणाम से उनका आत्मविश्वास आहत जरूर हुआ होगा।  हो सकता है कुछ एक को सोच तोल  कर बोलने का सबक भी मिला हो।  दुनिया के दो सबसे बड़बोले हॉकी राष्ट्रों भारत और पकिस्तान ने मुकाबले से पहले कहा था की उनके खिलाडी भाग लेने वाली टीमों को हैरान कर देंगे।  वाकई, हैरान कर दिया।  भारत को फ़्रांस ने हराया तो  पकिस्तान जर्मनी से पिट गया। 

       देश के हॉकी जानकार और विशेषज्ञ कह रहे हैं कि भारतीय हॉकी के लिए आने वाले साल बेहद चुनौती वाले हैं।  सालों बाद टोक्यो ओलम्पिक में पदक मिला जिसे बरकरार रखने की  जरुरत है। यही जूनियर खिलाडी कल  ओलम्पिक और विश्व कप में देश का प्रतिनिधित्व करेंगे।  ओलम्पिक के लिए बस दो साल का समय बचा है, जिसे देखते हुए जूनियर खिलाडियों पर ज्यादा दारोमदार रहेगा।  ओलम्पिक में भाग ले चुके  ज्यादातर खिलाडी शायद  ही  पेरिस ओलम्पिक तक अपनी श्रेष्ठ फार्म बरकरार रख पाएं!

       यह न भूलें कि एक समय विश्व हॉकी के बेताज बादशाह को 41  साल के सूखे के बाद ओलम्पिक पदक नसीब हुआ है, जिसे संजो कर रखने की  जरुरत है। सिर्फ दावे करने और दूसरों को कमजोर आंकने से कोई विजेता नहीं बन सकता।  यदि भारतीय हॉकी टीम, टीम प्रबंधन, कोच और सपोर्ट स्टाफ ने खुद को खुदा समझा तो लेने के देने पड़ सकते हैं। खिताब बचाना है तो निशाना लक्ष्य पर रखें, प्रतिद्वंद्वी को कमजोर न आंकें और अनुशासन और धैर्य के साथ विजयश्री का वरण करें!




रिलेटेड न्यूज़

टेक ज्ञान