लाइब्रेरी से दूर युवा पीढ़ी,लेकिन सोशल मीडिया में दिलचस्पी

विजय गर्ग | पब्लिक एशिया
Updated: 28 Oct 2021 , 12:42:09 PM
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 किताबें झांकती हैं, बंद अलमारी के शीशों से..किसी शायर द्वारा कहीं गई यह लाइनें आज के दौर में सार्थक साबित हो रही हैं। लेकिन इंटरनेट के दौर में पुस्तकों का क्रेज लगातार कम हो रहा है। शहर के पुस्तकालय अब एक इतिहास बन गए हैं। एक समय में इंसान की सबसे अच्छी दोस्त कही जाने वाली किताबों की जगह अब इंटरनेट ने ले ली है। कॉलेज के पुस्तकालयों में भी अब सन्नाटा पसरा रहता है।

पुस्तकालय की कहानियां और किताबों से प्यार, ये गुजरे जमाने का किस्सा बन गया है। आलम यह है कि शहर के विभिन्न पुस्तकालयाें में किताबों के खजाने पर मकड़ियों और धूल ने कब्जा जमा लिया है। अपने पाठकों के लिए तरसती यह किताबें अपने हाल पर आंसू बहा रही हैं। पुरानी पीढ़ियां किताबों को अपना दोस्त समझती थी। बुजुर्गों की मानें तो पहले के लोग दिन के कई घंटे पुस्तकालय में गुजार देते थे। लेकिन आज की युवा पीढ़ी किताबों से बहुत दूर हो चुकी है। इस पीढ़ी के कई युवा ऐसे भी हैं, जिन्होेंने पुस्तकालय का दरवाजा तक नहीं देखा। यह पीढ़ी सोशल नेटवर्किंग साइटों को दोस्त ही नहीं, बल्कि अपनी जिंदगी समझने लगी है। इसका नतीजा है कि स्कूली बच्चे सिर्फ अपने सिलेबस तक की बुक्स ही पढ़ रहे हैं। साहित्य की दुनिया से बच्चे और अभिभावक दोनों ही दूर हो रहे हैं।

15 फीसदी छात्र ले रहे लाइब्रेरी का लाभ
 जहां पर बेहतरीन पुस्तकों का संग्रह उपलब्ध है। इन कॉलेजों में विद्यालयों की तुलना में कई गुना अधिक पुस्तकाें का संग्रह है, लेकिन कॉलेजों से छात्र-छात्राओं द्वारा सिर्फ 15 फीसदी पुस्तकों का इस्तेमाल किया जाता है। पीसी बागला महाविद्यालय की बात करें तो यहां के पुस्तकालय में लगभग 52 हजार पुस्तकाें का संग्रह है, लेकिन 15 फीसदी छात्र छात्राएं हीं किताबों के प्रति रुचि दिखाते हैं। शहर के अन्य कई पुस्तकालयों और वाचनालयों का भी यही हाल है। कुछ रिटायर्ड लोग ही इन पुस्तकालयों में नजर आते हैं। युवा वर्ग तो इन पुस्तकालयों के पास फटकता हुआ नजर नहीं आता।

किताबों की जगह मोबाइल-लैपटॉप
यह कहना गलत नहीं होगा कि कंप्यूटर के युग में मोबाइल और लैपटॉप ने युवाओं को पुस्तकों से दूर कर दिया है। जिस तरह से मोबाइल और लैपटॉप का प्रयोग बढ़ा है, उससे भी पुस्तकों के प्रति युवाओं का रुझान कम हुआ है। अब मोबाइल ही युवाओं का एक अच्छा दोस्त बन गया है।

-वैज्ञानिक क्रांति के इस युग में दिन-प्रतिदिन नए आविष्कार हो रहे हैं। इंटरनेट की सुविधा ने पूरे विश्व को एक सूत्र में जोड़ दिया है। एक क्लिक पर कहीं भी कुछ भी जानकारी मिल रही है। यही वजह है कि अब पुस्तकों के प्रति युवाओं में रुझान कम हो रहा है।

पुस्तकालयों से युवा पीढ़ी को जोड़ कर रखने के लिए वाचनालयों को परंपरागत के साथ ई लाइब्रेरी में तब्दील कर देना चाहिए। सोशल मीडिया के दौर में पुस्तकोें की अहमियत को बरकरार रखना ही होगा। पुस्तकों से महंगाई भी खत्म करनी होगी।
विजय गर्ग 

 शिक्षाविद्

 सेवानिवृत्त प्राचार्य

 मलोट




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