वैश्विक परिदृश्य:वैश्विक नेतृत्व और भारत की सार्थक भूमिका

संजीव ठाकुर, चिन्तक,लेखक | पब्लिक एशिया
Updated: 19 Feb 2024 , 14:23:31 PM
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भारत हमेशा से शांति सद्भावना और सौहाद्र का सर्वकालिक समर्थक रहा है।रूस यूक्रेन युद्ध में भारत की तरफ से लगातार प्रयास किए जाते रहे हैं की युद्ध विराम हो जाए और इसके लिए भारत में अथक प्रयास भी किए हैं ,यह अलग बात है कि विस्तारवादी दृष्टिकोण को लेकर पुतिन और जेलेन्सकी अजीब सी राजनीतिक और कूटनीतिक परिस्थितियों में एक दूसरे के सामने खड़े तथा अड़े है । अब इजराइल हमास युद्ध में भारत की नीति स्पष्ट रूप से आतंकवादी गतिविधियों और उग्रवाद के विरोध में रही है।

भारत ने आतंकवादी संगठन हमास, हिज्बुल्लाह और फिलिस्तीन इस्लामी जिहाद का खुलकर विरोध किया है पर दूसरी तरफ इजरायल की बमबारी से घायल हुए पिलिस्तिनी नागरिकों के लिए 38 टन खाद्य सामग्री दवाएं और आवश्यक वस्तुएं तत्काल मुहैया कराई है। भारत के संबंध अरब देशों के साथ-साथ यूरोप,अमेरिका ,ब्रिटेन, फ्रांस और नाटो देशों से भी मधुर हैं इन परिस्थितियों में अरब देश भारत के प्रति युद्ध विराम की संभावनाओं की तलाश में भारतीय पहल का इंतजार कर रहा है। अब भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में जॉर्डन के शांति प्रस्ताव में वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया ,120 देशों के मतों से प्रस्ताव पारित हो गया, 45 देशों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। चूंकि जॉर्डन हमास को उग्रवादी संगठन नहीं मानता और भारत हमास को कट्टर उग्रवादी मानने की नीति पर चल रहा है। अब भारत को आगे बढ़कर पूरे विश्व का नेतृत्व करने का समय आ गया है।

भारतवर्ष अर्वाचीन काल से अहिंसा का पुजारी रहा है|पुरातन काल से ही राजा, महाराजा और सम्राटों ने अपने राज्य कार्य में हिंसा को कभी प्रथम पंक्ति में महत्त्व नहीं दिया था |तथा विस्तार वाली नीतियों में भी सेना प्रयास करती रही की आक्रमण के दौरान कम से कम सैनिक हताहत हो| फल स्वरूप राजा, महाराजा तथा सम्राटो ने सदैव अहिंसा के पुजारी बनकर ही राजकाज किया था| पहले से आक्रमण न करने की नीति तथा अहिंसा वादी नीति के कारण भारत पहले मुगलों का तथा बाद में अंग्रेजों का गुलाम हो गया था| इसके उपरांत बहुत संघर्ष तथा मेहनत के बाद 1947 में भारत को आजादी मिली| और इसके उपरांत भारत लगातार “अहिंसा परमो धर्म” की नीति पर अपने कदम बढ़ाता रहा है|

कुछेक उदाहरण को छोड़ दिया जाए जैसे पाकिस्तान द्वारा लगातार भारत पर आक्रमण करने से भारत ने मुंह तोड़ जवाब भी दिया| और इसी के परिणाम स्वरूप बांग्लादेश का जन्म भी हुआ| पर इस घटना में भी भारत की वैश्विक स्तर पर शांतिदूत की भूमिका ही रही| भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छवि एक शांति के संप्रभुता वाले गणतांत्रिक लोकतंत्र की रही| भारत ने ऐतिहासिक तौर पर कभी किसी राष्ट्र पर अपनी तरफ से आक्रमण हमला नहीं किया| और यही कारण है की संयुक्त राष्ट्र संघ के 75 वर्ष के निर्माण काल के पश्चात संयुक्त राष्ट्र संघ हमेशा शांति प्रयासों में भारत की सहायता लेता रहा है और भारत की संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ वैश्विक स्तर पर शांति प्रयासों में योगदान की महत्वपूर्ण रहा है| भारत की स्वतंत्रता के बाद मोदी सरकार ने भी वसुधैव कुटुंबकम की नीति का परिचालन कर विश्व को संदेश दे दिया है की भारत गांधी का देश है बुध और विवेकानंद का देश है| वह अपने साथ विश्व में भी शांति और सौहार्द्र बनाए रखना चाहता है|

और इसी कार्यक्रम में 26 सितंबर 2020 को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना दिवस की 75 वीं वर्षगांठ के अवसर पर आभासी आयोजन में हिंदी में संभाषण किया यह उनकी संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा को संबोधित करने का हिंदी में तीसरा अवसर था| उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा किए जा रहे शांति प्रयासों में अपनी भूमिका का स्मरण दिलाया| उन्होंने कहा की भारत विभिन्न समय में संयुक्त राष्ट्र संघ से कंधे से कंधा मिलाकर शांति प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान देता आया है. इसके साथ ही उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद के लोकतांत्रिक होने के प्रयासों में अपना दावा भी पेश किया था|

यह उल्लेखनीय है की भारत में संयुक्त राष्ट्र संघ की सभी शांति प्रयास की योजनाओं तथा अभियान में अपनी सशक्त जिम्मेदारी निभाते हुए अपना सहयोग तथा शांति सेना हेतु अपनी सेनाओं को भेजकर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है| संयुक्त राष्ट्र संघ की अपनी धर्म तथा संविधान तथा घोषणा पत्र मैं शांति प्रयासों के लिए सेना को भेजने का कहीं उल्लेख नहीं है किंतु विश्व के कई युद्ध रत तथा मुसीबत में पड़े राष्ट्रों को जहां गृह युद्ध जैसी स्थिति बनी है| वहां भारतीय गणतंत्र ने अपनी सेनाएं भेज कर हजारों लाखों मानव की रक्षा कर, मानव जाति की सेवा की है. |

और अवांछित युद्ध जैसी स्थिति पर अपनी सेनाओं द्वारा नियंत्रण स्थापित किया है| इस बात को संयुक्त राष्ट्र संघ अलग-अलग महासभा में स्वीकार भी करता है| अब तक भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आहूत शांति प्रयासों तथा शांति निर्वहन संक्रियाओं का समर्थन कर रचनात्मक सहयोग हर संभव किया है\ भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के आव्हान पर कोरिया, वियतनाम,लागोस,मिस्र, सीरिया , लाइबेरिया, युगोस्लाविया,नामीबिया, सोमालिया, सूडान सहित अनगिनत देशों में अपनी सेनाएं वहां पर शांति बहाली हेतु अलग-अलग समय में उपलब्ध करवाई थी| 

भारत द्वारा विश्व शांति की स्थापना की दिशा में संयुक्त राष्ट्र संघ शांति अभियानों में अनथक एवं बहुत बड़ा सहयोग किया है| उन्होंने कई देशों के मध्य पर्यवेक्षक की भूमिका भी सफलतापूर्वक निभाई है| इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत को शांति निरीक्षण आयोगों, समितियों तथा अंतरिम विश्वास बहाली कार्यक्रमों में बतौर सदस्य नामित भी किया है| इस भूमिका को भी भारत ने बहुत सफलतापूर्वक निर्वहन किया है, वैसे भी भारत की विदेश नीति सदैव वैश्विक विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का प्रबल पक्षधर रही है| इसीलिए भारत सरकार ने न सिर्फ संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति बहाल अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है बल्कि विश्व के अनेक तनावग्रस्त संकटग्रस्त एवं युद्ध देशों के मध्य अपनी कूटनीतिक राजनैतिक भूमिका भी कर्मठता से निभाई है| संयुक्त राष्ट्र संघ बहुत महत्वपूर्ण होकर जटिल भी होते हैं| ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की हर भूमिका को बड़े ही शांति और सौहार्दपूर्ण वातावरण में निपटाने का कार्य बखूबी निभाया है| और भारत राष्ट्र जिस तरीके से आत्मनिर्भर होकर विदेश की सरकारों से अपने संबंध स्तापित किए हैं, उससे यह दिन दूर नहीं जब भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्य बनाकर, वैश्विक शांति के लिए शांतिदूत का दर्जा दिया जाएगा|





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