संविधान दिवस:समझनी होगी संविधान की मूल भावना

डॉ घनश्याम बादल | पब्लिक एशिया
Updated: 25 Nov 2021 , 15:06:46 PM
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 भारत का संविधान  आज से 72 वर्ष पूब 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ इसी दिन की महत्ता को प्रतिपादित करने के लिए वर्तमान सरकार ने संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ0 भीमराव आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष के रूप में 2015 से संविधान दिवस सम्पूर्ण भारत में मनाया जा रहा है। इससे पहले इसे राष्ट्रीय कानून दिवस के रूप में मनाया जाता था । 

भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान माना जाता है और इसे एक प्रकार से तत्कालीन ब्रिटिश संविधान का ही संशोधित एवं परिष्कृत रूप भी माना जाता रहा है । डॉ भीमराव अम्बेडकर को भारतीय संविधान का वास्तुकार माना जाता है जबकि संविधान समिति के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद थे । संविधान सभा ने भारत के संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवम्बर 1949 को पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया गया। संविधान के निर्माण में करीब 284 लोग शामिल थेण् जिसमें 15 महिलाएं भी थीं । 

भारतीय संविधान में एक उद्देशिका 470 अनुछेद व 25 भाग शामिल हैं । इसमें बारह अनुसूची एवं 105 अनुलग्नक हैं । अब तक 127 संविधान संशोधन विधेयक संसद में लाये गये हैं जिनमें से 105 संविधान संशोधन विधेयक पारित होकर संविधान संशोधन अधिनियम का रूप ले चुके हैं।

भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ जिसकी प्रस्तावना में भारतीय संविधान को समस्त भारत के नागरिकों को लोकार्पित करते हुए भारत को एक लोकतांत्रिक समाजवादी धर्मनिरपेक्ष गणराज्य घोषित किया गया है।  भारतीय संविधान में अधिकारों कर्तव्यों एवं संविधान की धाराओं के साथ.साथ नीति निर्देशक तत्व भी शामिल हैं। 


हालांकि आंबेडकरवादी और बौद्ध लोग कई दशकों पूर्व से ‘संविधान दिवसश् मनाते रहे हैं।  मगर प्रमुखता से इसे 2015 से ही मनाना शुरू हुआ। इसी दिन संविधान निर्माण समिति के वरिष्ठ सदस्य डॉ सर हरीसिंह गौर का जन्मदिवस भी है। 


हममें से ज्यादातर लोगों को यह तो पता है कि भारत का संविधान किसने बनायाए कब व कितने समय में बनाया और संविधान में क्या कर क्या है  मगर संविधान को मनोरम चित्रों से किसने सजाया यह विरले लोग ही जानते होंगे। संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉण् भीमराव अंबेडकर के निर्देशन में भारत का संविधान लिखा गया ।  बनाने वाले जब संविधान बना रहे थे तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इन्हें सजाने वाले की खोज करवा रहे थे। यह खोज बंगाल के शांतिनिकेतन में आकर पूरी हुईण् यहां नंदलाल बोस कलाभवन के प्राध्यापक के तौर पर काम कर रहे थेण् प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू शांतिनिकेतन में आए हुए थेण् तब उनकी मुलाकात नंदू बोस से हुईण् पंडित नेहरू ने उन्हें संविधान को भारतीय चित्रों सजाने का उनसे आग्रह कियाए जिन्हें नंदू बोस ने स्वीकार कर लिया। 


प्रारंभिक  संविधान में  22 भाग थे  और हर भाग की शुरुआत में 8 गुना 13 इंच के चित्र  हैं।  इन 22 चित्रों को बनाने में 4 साल लगेण् इस काम के लिए नंदलाल बोस को 21 हजार रुपए मिले थे । दूसरी तरफ एक दूसरे कलाकार प्रेम बिहारी रायजादा ने मेहनताना लेने से इनकार कर दिया था। 

भारत के संविधान से जुड़ी एक और रोचक जानकारी यह है कि इसकी मूल प्रति टाइपिंग या प्रिंट में उपलब्ध नहीं है। संविधान की मूल प्रति हिंदी और अंग्रेजी में हाथ से लिखी गई है जिसे प्रेम बिहारी रायजादा ने लिखा है।  रायजादा ने पेन होल्डर निब से संविधान के हर पन्ने को बहुत ही खूबसूरत इटैलिक अक्षरों में लिखा है।  सुलेखन यानी कैलिग्राफी प्रेम बिहारी का खानदानी शौक था। 


संविधान को बनाने में जहां 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे थेए वहीं इसे हाथों से लिखने में 6 महीने का समय लगा थाण् लेकिन इस काम से जु़ड़ा एक रोचक किस्सा है।  जब प्रेम बिहारी से सरकार ने इस काम को पूरा करने के लिए पारिश्रमिक के बारे में पूछाए तो उन्होंने कहाए मुझे एक भी पैसा नहीं चाहिए । न ही कोई महंगा उपहार चाहिए। लेकिन उन्होंने संविधान के हर पृष्ठ पर अपना नाम और अंतिम पृष्ठ पर अपने दादाजी का नाम लिखने की शर्त रख दीए जिसे सरकार ने मान लिया। 

भारत के संविधान को नंदलाल बोस के निर्देशन में शांतिनिकेतन के कलाकारों ने अपने अद्भुत चित्रों से सजाए हैं।  इनमें मोहनजोदड़ोए वैदिक कालए रामायणए महाभारतए बुद्ध के उपदेशए महावीर के जीवनए मौर्यए गुप्त और मुगल कालए इसके अलावा गांधीए सुभाषए हिमालय से लेकर सागर आदि के सुंदर चित्र बने हैं । वास्तव में यें  चित्र भारतीय इतिहास की विकास यात्रा हैं।  इन चित्रों की की शुरुआत होती है भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ के शेर से।  अगले भाग में भारत की प्रस्तावना लिखी हैए जिसे सुनहरे बार्डर से घेरा गया हैण् मगर इससे जुड़ा एक विवाद भी है । दरअसलए भारतीय संविधान की मूल प्रति के कवर पेज पर अशोक स्तंभ के तीन शेर अंकित हैं। अंदर के पृष्ठों पर बॉर्डर उकेरे गए हैं । आरोप है कि इन्हें उकेरने वाले इंदौर के कलाकार दीनानाथ भार्गव और उनके साथी कलाकारो का संविधान में कहीं भी जिक्र नहीं किया गया है ।  शांति निकेतन के प्राचार्य नंदलाल बोस के परिवार के लोगों ने इन कलाकारों का हक छीनकर अपने परिवार के लोगों के नाम संविधान की सजावट करने वालों में लिखे हैं और इनका नाम गायब कर दिया है।  एक शोध कार्य के दौरान दीनानाथ भार्गव को इसकी जानकारी मिली और बाद में उन्होंने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को इसकी लिखित शिकायत भी की थी । एक तरह से आरोप  है कि जिस तरह कानून की मूर्ति की आंखों पर पट्टी बंधी हुई है उसी का लाभ उठा कर संविधान निर्माण की शुरुआत से ही आंखों में धूल झोंकने का कार्य भी किया गया जो आज तक किया जा रहा है। 

आज संविधान में कई छिद्रों को तलाश करते हुए चतुर लोग संविधान की मूल भावना से हटकर इसका उपयोग अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए करने में लगे हैं अदालतों में सत्यमेव जयते का बोर्ड तो लगा है मगर हालात बहुत अच्छे नहीं कहे जा सकते हैं । श्जस्टिस डिलेडए जस्टिस डिनाइडश् का उद्घोष तो है मगर न्याय में जितनी देरी भारत में की जाती है शायद ही कहीं और की जाती हो तो आज संविधान दिवस के उपलक्ष में इस बात की जरूरत है की संविधान की मूल भावना को समझते एवं उसका आदर करते हुए एक ऐसा भारत बनाएं जो इसे सचमुच विश्व का सिरमौर बना सके। 

डॉ घनश्याम बादल











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