साध्वी उमा भारती का शराबबंदी पर राजनैतिक बयान

नरेंद्र तिवारी 'पत्रकार' | पब्लिक एशिया
Updated: 26 Sep 2021 , 15:56:28 PM
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  मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती ने शराबबंदी को लेकर अपने ताजातरीन बयान में कहा कि 15 जनवरी 2022 के बाद मध्यप्रदेश में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू करवाकर ही रहूंगी। साध्वी उमा भारती भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय नेता है। वें रामजन्मभूमि आंदोलन की प्रमुख नेताओं में से एक रहीं है। केशरिया गणवेश धारण करने वाली उमा भारती यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह राष्ट्रीय फलक पर चर्चित चेहरा है। अपनी दृढ़ धार्मिक मान्यताओं को अधिक महत्व देते हुए राजनैतिक मंचो पर भी समय-समय पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराती रहीं है। उनके बारे में अक्सर यह अनुमान लगाए जाते है कि वह नेता कम और साध्वी अधिक है। समय-समय पर उनके बयान देश एवं प्रदेश की सियासत में बवाल मचाते रहें है।

शराबबंदी पर साध्वी उमा भारती का यह बयान उनकी राजनीति में पुनः बढ़ती अभिरुचि को दर्शाता प्रतीत हो रहा है। शायद उमा भारती भी यह भलीभांति जानती होगी कि शराबबन्दी को राज्य की सख्ती से नहीं, अपितू धार्मिक और नैतिक बल से ही वास्तविक रूप से लागू किया जा सकता है। भारत मे अनेकों सामाजिक एवं धार्मिक संस्थान कार्यरत है, जिनके सानिध्य में शराब के नशे में चूर रहने वाले शराबियों ने इस लत से तौबा कर ली है। इसके विपरीत शराबबन्दी की घोषणा कर चुके प्रदेशों में शराब की अवैध ओर आसान उपलब्धता देखी जा सकती है। भारत मे जिन प्रमुख प्रदेशों में शराबबन्दी कानून लागू है उसमें गुजरात,नागालैंड,बिहार और मिजोरम प्रमुख है। उत्तराखण्ड में कुछ शहरों में शराबबन्दी लागू है। गुजरात मध्यप्रदेश का पड़ोसी राज्य है। जहा 1960 से शराबबन्दी कानून लागू किया गया है। कुछ लोगो का मानना है कि गुजरात मे जारी प्रतिबंध वास्तविक कम  कागजी अधिक है। वर्ष 2016 में सरकारी आंकड़ों के अनुसार बीते पांच वर्षों में 2500 करोड़ रु की अवैध शराब जप्त की गई थी। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र,राजस्थान के गुजरात से लगे सीमावर्ती शहरों में शराब के ठेकों की ऊंची बोली इस बात को शाबित करती है कि इन राज्यों से अवैध शराब तस्करी के माध्यम से गुजरात पहुचाई जा रही है। बिहार में 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू की गई। बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार के अनुसार घरैलु हिंसा सहित अपराधों को कम करने के उदेश्य से शराबबन्दी लागू की गई थी। बिहार में अवैध शराब की उपलब्धता पड़ोसी प्रदेश उत्तरप्रदेश,झारखंड,पश्चिम बंगाल की जाती है। 2020 को छठ पर्व के अपने बिहार दौरे के समय शराब की आसान उपलब्धता को करीब से जानने का अवसर मिला। यह भी देखने को मिला कि स्थानीय रूप स्तर पर गांव-गांव अवैध शराब बिक रही है।
दरअसल शराब पर प्रतिबंध नैतिक दृष्टिकोण से बिल्कुल सही है। राज्यों को अपने नागरिकों को नशे से दूर रहने की भरसक कोशिश भी करना चाहिए। यह सही है की बड़े शहरों में शराब का शौक बढ़ता जा रहा है। हमारे युवाओं में शराब के प्रति आकर्षण भी बड़ा है। आंकड़े बताते है कि शराब सेवनकर वाहन चलाना सड़क दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण है। दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 में शराब पीकर वाहन चलाने से 493 दुर्घटनाएं घटित हुई जिसमें 503 मौते हुई है। यह भी सही है कि शराब का सेवन करने के बाद इंसानी हार्मोन्स में बढ़ोतरी हो जाती है जिसके कारण वह उत्तेजित हो जाता है इसी उत्तेजना से अपराध कारित होते है।

महिलाओं के विरुद्ध पुरषों द्वारा की गई शारारिक हिंसा के अधिकांश प्रकरणों में शराब का सेवन प्रमुख वजह रही है। अपराध के साथ शराब मजदूर पेशा गरीब वर्ग के सामाजिक स्तर को भी प्रभावित करती है। अपनी थकान उतारने के लिए यह वर्ग शराब का सेवन करने लगता है। इस प्रक्रिया में वह शराब के सेवन का आदी हो जाता है। जो इस वर्ग की आर्थिक और सामाजिक तरक्की को प्रभावित करती है। आमतौर पर शहरों की देशी मदिरा दुकानों के सामने लगी मजदूर पेशा लोगों की भीड़ देखी जा सकती है। यह पूरे भारत मे एकसी दिखाई देती है। शायद गरीब और मजदूर पेशा वर्ग पर पढ़ते शराब के विपरीत प्रभाव को लेकर ही शायर मैराज फैजापुरी ने लिखा होगा "मैकदै में किसने कितनी पी खुदा जाने मगर,मैकदा तो मेरी बस्ती के कई घर पी गया।" इसमे कोई शक की गुंजाइश नहीं है कि शराब से समाज,प्रदेश,राष्ट्र को बड़ा नुकसान है। इसका सेवन हमारे सामाजिक संस्कारों को भी प्रभावित करता है। शराब का समाज में प्रचलन बरसो से जारी है। शराब का प्रयोग दुनियाँ सहित भारत मे हजारों वर्षों से किया जा रहा है। भारत मे कई जाति समाज मे शराब का सेवन सामाजिक रीतिरिवाजों का अनिवार्य हिस्सा है। मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,
महाराष्ट्र के राज्यों महुए से बनी शराब का प्रचलन है। यहां आदिवासी समाज मे महुए से बनी शराब का सेवन सामूहिक रूप से किया जाता है। 
अब सवाल यह है कि क्या शराब के अधिक प्रचलन का कारण शराब की आसान उपलब्धता है। क्या सरकार द्वारा संचालित दुकानों का संचालन बन्द हो जाने मात्र से शराब के दुष्परिणामों को कम किया जा सकता है। साध्वी उमा भारती यह अच्छी तरह जानती है कि शराब की आदत को धार्मिक और नैतिक बल से ही खत्म किया जा सकता है। भारत देश मे ऐसी अनेको धार्मिक सामाजिक संस्थाएं कार्यरत है जिन्होंने शराब की लत में डूबे गरीबों एवं मजदूर पेशा वर्ग को न सिर्फ इस दलदल से निकाला अपितु उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत भी किया है। ऐसी संस्थाओं में गायत्री परिवार बेहद पुरानी संस्था है जिसकी शाखाएं सम्पूर्ण भारत मे शराब एवं अन्य नशे के सेवन के आदी हो चुके हजारो लाखो लोगो को इस लत से बाहर निकालकर संस्कारी बनाने का काम कर रही है। इसी प्रकार का कार्य विश्व मानव रूहानी केंद्र नामक संस्था ने किया इस संस्था के आश्रम भारत मे हरियाणा,पंजाब,मध्यप्रदेश,राजस्थान,बिहार सहित देशभर है।

इस संस्था ने भी  समाज में गरीब मजदूर दलित वर्ग को नशे की लत से निकाला है उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से स्थापित भी किया है। राधा स्वामी सत्संग मण्डल सहित आदिवासी क्षेत्रों में कार्यरत संस्थाओं ने ग्रामीणों को नशे की आदत से छुटकारा दिलाते हुए उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने का कार्य किया है जो अब भी जारी है। जब धर्म और नैतिक बल से नशे की आदत पर काबू किया जा सकता है तब मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती जिन्हें अपनी धार्मिक आस्थाओं में दृढ़ विश्वास है। उन्हें क्यों लगता है कि शराबबन्दी से ही समाज मे व्याप्त शराबखोरी की बढ़ती प्रवृति पर विराम लगाया जा सकता है। दरअसल उमा भारती का यह बयान पूर्ण रूप से राजनीति  प्रेरित नजर आता है। इस बयान के पीछे उनकी साफ मंशा अपनी खोई राजनैतिक जमींन की तलाश है। उनके यह बयान अगर सियासी नहीं है तो फिर शराबबन्दी रूपी जनकल्याणकारी कदम को उठाने के लिए 15 फरवरी 2022 तक इंतजार क्यों..? यह सही है की शराब से प्राप्त राजस्व से शिक्षा,स्वास्थ्य,सड़क सहित बुनियादी सुविधाओं को बढाने का कार्य किया जाता है। अधिकांश राज्यो के सरकारी शराब बेचने के पीछे राजस्व प्राप्ति तर्क रहता है।

साध्वी उमा भारती द्वारा मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री रहते हुए शराबबन्दी का यह साहसिक कदम क्यों नहीं उठाया गया? यदि ऐसा होता तो प्रदेश की जनता को उनके बयान में राजनीति नजर नहीं आती और उन्हें राजनैतिक जमीन की तलाश नहीं करना होती। साध्वी उमा भारती को शराबबन्दी के लिए तत्काल आंदोलन शुरू करना चाहिए साथ ही धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं को जो शराब की बुरी आदत से लोगो को मुक्त करा रहीं है ऐसी संस्थाओं को आर्थिक रूप से सदृढ़ करने का प्रयास भी करना चाहिए। शराब एक अच्छे समाज के निर्माण में बाधक है। मध्यप्रदेश सहित राष्ट्र में सामाजिक जागरूकता से ही इस बुराई से बचा जा सकता है।





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