सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को जनहित में तत्काल लागू किये जाने के संबंध में

पब्लिक एशिया ब्यूरो | विशेष संवाददाता
Updated: 25 Jun 2021 , 14:42:39 PM
  • Share With



भागीदारी संकल्प मोर्चा में शामिल भागीदारी पार्टी (पी) द्वारा जिलाधिकारी लखनऊ के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति महोदय, भारत सरकार, नई दिल्ली को सम्बोधित ज्ञापन कलेक्ट्रेट, लखनऊ में नगर मजिस्ट्रेट, महोदय को सामाजिक न्याय समिति को जनहित में तत्काल लागू कराये जाने विषयक ज्ञापन सौपा गया। इस अवसर पर राष्ट्रीय प्रवक्ता अश्वनी कुमार प्रजापति एवं डाॅ0 ज्योति स्वरूप तथा मण्डल अध्यक्ष, लखनऊ बनवारी लाल प्रजापति जी, सुखपाल मौर्या जी एवं रामखेलावन पाल जी उपस्थित रहें।  
मा0 नगर मजिस्ट्रेट, लखनऊ महोदय को पार्टी के पदाधिकारियों द्वारा अवगत कराया गया कि पिछड़े वर्ग के मौलिक हितों की रक्षा हेतु आरक्षण में वर्गीकरण के उद्देश्य से गठित सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा रद्दी की टोकरी में डालना ना सिर्फ पिछड़े समाज के साथ धोखा है बल्कि पिछड़े समाज के मौलिक अधिकारों का हनन भी है। ज्ञातव्य है कि विगत 2017 विधानसभा चुनाव में पिछड़े वर्ग का वोट लेने के लिए वर्तमान प्रदेश सरकार के शीर्ष नेतृत्व द्वारा सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को लागू करने का वादा करके पिछड़ों का वोट तो ले  लिया गया,  किन्तु  जब सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू करने का समय आया तो सरकार बहानेबाजी करके रिपोर्ट को लागू नहीं कर रही है। समय बढ़ाने के लिए सरकार ने राघवेन्द्र सिंह कमेटी बनाकर उपरोक्त गंभीर विषय को लंबित किया, किन्तु राघवेन्द्र सिंह कमेटी की रिपोर्ट 30.05.2018 को आने के बाद सदन में मा0 मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी एवं  संसदीय कार्य मंत्री जी द्वारा जल्द ही रिपोर्ट लागू करने का आश्वासन देने के बाद भी आज तक प्रकरण लम्बित है और उ0प्र0 सरकार ने राघवेन्द्र सिंह कमेटी की सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में डाल दिया है।
ज्ञातव्य है कि वर्ष 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मा0 राजनाथ सिंह ने काका कालेलकर और मंडल आयोग की सिफारिशों के गहन अवलोकन के बाद पिछड़े वर्ग को उनका वास्तविक हक देने की नीयत से आरक्षण में वर्गीकरण के लिए सामाजिक न्याय समिति बनाने का आदेश दिया था, लेकिन दुर्भाग्यवश किन्हीं कारणों से सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू नहीं कर पाए। बाद की सरकारों ने उपरोक्त प्रकरण को रद्दी की टोकरी में डाल दिया।
महामहिम जी को यह भी अवगत कराना है कि अब तक 09 राज्यों आंध्र प्रदेश, पांडुचेरी, कर्नाटक, हरियाणा, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और बिहार  के साथ ही लगभग 13 प्रांतों में ओ0बी0सी0 आरक्षण में वर्गीकरण करके लाभ दिया जा रहा है।
जबकि मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने इंदिरा साहनी मामले में यह स्पष्ट व्यवस्था दिया हुआ है कि पिछड़े वर्गों को पिछ़ा या अति पिछड़ा के रूप में श्रेणीबद्ध करने में कोई विधिक बाधा नहीं है और इसके लिए राज्य सरकारें स्वतंत्री हैं। अगर राज्य सरकार चाहे तो यह निर्णय ले सकती है। जैसा कि 13 प्रांतों की सरकारों ने निर्णय ले रखा है।
जब काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट, मंडल आयोग की रिपोर्ट, सामाजिक न्याय समिति एवं राघवेन्द्र सिंह कमेटी की रिपोर्ट का एक पारदर्शी, न्याय संगत और मजबूत स्तंभ उत्तर प्रदेश सरकार के पास है तो सरकार सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट क्यों लागू नहीं करना चाहती है ? इससे सरकार के दोहरे चरित्र का पता चलता है। वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार पिछड़ा विरोधी, पिछड़ों के हितों का हनन करने पर आमादा है।
अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि आरक्षण में वर्गीकरण के आधार पर पिछड़े वर्ग, वंचित समाज को उनका मौलिक अधिकार दिलवाने हेतु उत्तर प्रदेश सरकार के पिछड़ा विरोधी मानसिकता को संज्ञान में लेते हुए सामाजिक न्याय समिति की  रिपोर्ट को उपरोक्त 13 प्रांतों की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में तत्काल प्रभाव से जनहित में लागू कराने की कृपा करें।





रिलेटेड न्यूज़

टेक ज्ञान