सूचना प्रौद्योगिकी में इतनी नौकरियां कैसे?

नरविजय यादव | पब्लिक एशिया
Updated: 23 Oct 2021 , 15:57:04 PM
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कोविड की दूसरी लहर खत्म होने के बाद आईटी सेक्टर में जिस तरह से अनुभवी पेशेवरों की मांग बनी हुई है, उस हिसाब से योग्य उम्मीदवार मिल नहीं पा रहे हैं

 छह माह में इन्फॉर्मेशन टैक्नोलॉजी (आईटी) कंपनियों में भर्ती प्रक्रिया में तेजी दर्ज हुई है। देश की चार शीर्ष आईटी कंपनियों ने अप्रैल-जून, 2021 में 48 हजार से अधिक नये कर्मचारियों की नियुक्ति की। दूसरी तिमाही, यानी जुलाई-सितंबर के दौरान नयी नियुक्तियों की संख्या का आंकड़ा बढ़ कर लगभग 54 हजार हो गया। कुल मिलाकर बीती छमाही में एक लाख से अधिक युवाओं को आईटी कंपनियों में जॉब मिले। चारों कंपनियां अगले छह माह में करीब इतनी ही और नयी नौकरियां देने की मंशा रखती हैं।


डिजिटल टैक्नोलॉजी के बढ़ते प्रयोग के कारण बाजार में आईटी पेशेवरों की मांग बढ़ रही है। मानव संसाधन प्रबंधन कंपनी टीमलीज की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि आईटी इंडस्ट्री में एट्रिशन रेट यानी नौकरी छोड़ने की दर में लगातार वृद्धि हो रही है। आईटी सेक्टर में औसत एट्रिशन रेट 8.67 प्रतिशत है, जबकि भारत में एट्रिशन रेट औसत से ढाई गुना अधिक है। जुलाई-सितंबर तिमाही के नतीजों के अनुसार, विप्रो में एट्रिशन रेट सर्वाधिक 20.5 है। इन्फोसिस 20.1 प्रतिशत के साथ दूसरे नंबर पर है, जबकि आईटी की सबसे बड़ी कंपनी टीसीएस 11.9 प्रतिशत के साथ तीसरे स्थान पर है। 

बढ़ते एट्रिशन के साथ आईटी कंपनियों में रोजगार के अवसर निरंतर बढ़ रहे हैं। टीसीएस ने पहली तिमाही में 43 हजार और दूसरी तिमाही में एट्रिशन के बाद भी लगभग 20 हजार नये कर्मचारियों की भर्ती की। अगले छह माह में कंपनी का इरादा 35,000 और फ्रेशर नियुक्त करने का है। विप्रो और इन्फोसिस में भी तेजी से नियुक्तियां हुई हैं। 

कोविड की दूसरी लहर के बाद जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है, देश में रोजगार की स्थिति में सुधार दिखने लगा है। ऐसा अनुमान है कि कोविड महामारी की दूसरी लहर के दौरान भारत में एक करोड़ से अधिक लोगों को अपने कामधंधे से हाथ धोना पड़ा था। दुनिया में सब कुछ अस्थायी है, पहले यह किताबों में पढ़ने को मिलता था, जबकि अब यह एक जीता-जागता सच बन चुका है। वक्त के हिसाब से फटाफट बदलाव करने को तैयार रहने वाली कंपनियों में रोजगार के अवसर बढ़ने लगे हैं, जबकि स्थायित्व और सही वक्त आने का इंतजार करने वाली कंपनियों में हालात अभी भी ठीक नहीं हैं। प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, ई-कॉमर्स और मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर में रोजगार के अधिक अवसर पैदा हो रहे हैं। प्रौद्योगिकी में भी इन्फॉर्मेशन टैक्नोलॉजी (आईटी) के क्षेत्र में जॉब्स के दरवाजे ज्यादा तेजी से खुलते जा रहे हैं।

 टीमलीज की मानें तो आईटी सेक्टर में जिस तरह से अनुभवी पेशेवरों की मांग बनी हुई है, उस हिसाब से योग्य उम्मीदवार मिल नहीं पा रहे हैं। चूंकि जैसे चाहिए वैसे कर्मचारी जल्दी मिल नहीं पाते हैं, इसलिए आईटी कंपनियां अपने काबिल कर्मचारियों को बनाये रखने के लिए उनकी तनख्वाह बढ़ाने का इरादा रखती हैं। कंपनियां नहीं चाहतीं कि टेलेंट की कमी के कारण उनके मौजूदा कर्मचारी ज्यादा तनख्वाह के लालच में कहीं और न चले जायें। एचसीएल ने तो कर्मचारियों को अपने यहां रोके रखने की रणनीति के तहत तीन हजार वरिष्ठ कर्मियों को कंपनी में हिस्सेदारी देने का प्लान बना लिया है।

महामारी के दौर में जब कारखाने और दफ्तर लंबे समय तक बंद रहे, तब वर्क फ्रॉम होम की संस्कृति ने जन्म लिया। फ्लेक्सी वर्क की जरूरत तो एक अरसे से महसूस की जा रही थी, लेकिन कोई पहल करने को राजी नहीं था। सड़कों पर लगते लंबे-लंबे जाम, यातायात के साधनों पर पड़ते दबाव और प्रदूषण से स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभाव के नाते दूरी पर स्थित कार्यालयों में पहुंचना एक दुरूह समस्या रही है। वर्क फ्रॉम होम से दूर-दराज और छोटे शहरों के युवाओं को भी बड़ा लाभ हुआ है।

 एक सर्वे से पता चला है कि ऐसे स्थानों से भी कर्मचारियों को चुना जा रहा है, जहां कंपनियों के अपने कार्यालय नहीं हैं। ऐसे शहरों से भर्तियों का आंकड़ा 35 प्रतिशत तक जा पहुंचा है, जबकि महामारी से पहले यह आंकड़ा 5 प्रतिशत था। वर्क फ्रॉम होम योजना के तहत जिन शहरों से युवाओं को चुना जा रहा है उनमें पटना, नागपुर, कोयम्बटूर, इंदौर, ऊटी, कोलकाता, मदुरै, मंगलौर, त्रिशूर आदि शामिल हैं। जिन उद्योगों की कंपनियां ऐसी भर्तियां अधिक कर रही हैं उनमें एडटैक, फूडटैक, फिनटैक, हैल्थटैक, ई-स्पोर्ट्स, ईकॉमर्स, आईटी सेक्टर, उपभोक्ता उत्पाद, भवन निर्माण, इंजीनियरिंग और दवा कंपनियां प्रमुख हैं।





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