स्वाद के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जाने जाते है चिड़ावा के पेड़े

प्रभुशरण तिवाड़ी अधिस्वीकृत वरिष्ठ पत्रकार | पब्लिक एशिया
Updated: 19 Jun 2021 , 16:34:36 PM
  • Share With



पेड़ा मिठाईयों का राजा कहलाता है। पेड़ा नाम आते ही मुख में चिड़ावा भी स्वतः ही आ जाता है। चिड़ावा के पेड़ो ने पिछले 50-60 वर्षो में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित की है। पहले पेड़ो के साथ मथुरा का नाम जुड़ा था जहां एक आंख का पेड़ा प्रसिद्ध है, परन्तु चिड़ावा के पानी की तासीर, घुटाई, सिकाई एवं दो आंखो ने चिड़ावा के पेड़ो को जबरदस्त प्रसिद्धी दिलवाई। चिड़ावा के पेड़े की सफलता में रानी शक्ति जी का मेला, सालासर बालाजी तथा खाटू श्याम के मेलो का विशेष योगदान रहा है। यहां के प्रवासी बंधुओं ने इसको प्रसिद्ध करने में विशेष भूमिका का निर्वहन किया है। अहमदाबाद में पिछले 60 वर्षो से रहने वाले चिड़ावा के विनोद तिवाड़ी ने बताया कि हमारे क्षेत्र के प्रवासी जब भी अपने गांव से अपने कार्य क्षेत्र कोलकाता, मुम्बई, हैदराबाद, गोहाटी, अहमदाबाद, मद्रास आदि देश के विभिन्न स्थानों पर जब जाते है तब अपने प्रियजनों को खुश करने के लिए चिड़ावा के पेड़ साथ में ले जाते है। चिड़ावा के पेड़ो के स्वाद ने सभी को लुभा लिया तथा स्वाद का बादशाह बन बैठा। वर्तमान समय में तो देश के कई शहरों में चिड़ावा के पेड़ो के नाम से कई दुकाने है। चिड़ावा से भी प्रतिदिन देश के विभिन्न हिस्सों में पेड़ो की सप्लाई होती है। आज चिड़ावा शहर के नाम की प्रसिद्धि में पेड़ो का महत्वपूर्ण स्थान है।
चिड़ावा के पेड़े का इतिहास लगभग 100 वर्षो का है। लगभग 65 वर्ष पूर्व यहां पेड़े के नामी 3-4 दुकानदार थे जो प्रतिदिन 01 घान (15-20 किलो) प्रत्येक दुकानदार द्वारा बनाये जाते थे। कुल मिलाकर प्रतिदिन 50-60 किलो पेड़ो की खपत उस समय थी। उस समय के प्रमुख दुकानदारों में स्योमखराम-दुर्गादत्त हलवाई, इन्ही दुर्गादत्त हलवाई के भाई हिम्मतराम, मदनलाल हलवाई की दुकान थी। दूसरे हलवाई सागरमल-श्यामजी की दुकान  व छोटे लाल बनवारीलाल हलवाई की दुकान थी। चिड़ावा में ये ही गिनी-चुनी पेड़ो की दुकान थी। 1955 में पास के गांव घरड़ाना से आकर रिछपाल-लालचंद राव ने चिड़ावा में पेड़े बनाने का कार्य प्रारम्भ किया। लालचंद चौधरी के नाम से इन्होने चिड़ावा के पेड़ो के व्यापार को काफी बढाया। वही दुर्गादत्त हलवाई के पुत्र बजरंगलाल व पौत्र रामअवतार, गणेशकुमार, राजकुमार ने काम को आगे बढाया। सागरमल हलवाई के पुत्र शंकर एवं कैलाश फतेहपुरियां(काशू हलवाई) ने चिड़ावा के पेड़ो की प्रसिद्धी को चार-चांद लगाये। वर्तमान में काशू हलाई का संजय मिष्ठान भण्डार, कन्हैयालाल हलवाई, लालचंद चौधरी के पुत्रो सुभाष एवं रजनिश राव की प्रसिद्ध दुकाने है। लालचंद चौधरी के ही परिवार के नाहरसिंह, परमेश्वर लाल वर्मा हलवाई, अन्नपूर्णा मिष्ठान, मुकेश मिष्ठान भी वर्तमान में पेड़ो के प्रसिद्ध व्यावसायी है। वही इन्ही के साथ काम कर अनुभवी बने देवाराम सैनी, मातुराम सैनी सहित एक बड़ी श्रृंखला है जो चिड़ावा के पेड़ो की प्रसिद्धी को चार-चांद लगा रहे है।
चिड़ावा के पेड़े की विशेषता के बारे में काशू हलवाई के पुत्र मनोज बताते है कि सबसे मुख्य कारण चिड़ावा के पानी की तासीर है। दूसरा चिड़ावा के पेड़े में एक किलो मावा के साथ केवल तीन सौ ग्राम चीनी होती है। पेड़े की घुटाई व साथ ही सिकाई का विशेष महत्व है। पेड़े पर दो आंखे चिड़ावा की पहचान है।




रिलेटेड न्यूज़

टेक ज्ञान