गुरुग्राम:मेरा नाम दीनदयाल डुडेजा है मेरी उम्र 82 साल है, मेरा जन्म 15 मई1939 के तहसील तौंसा शरीफ़ में हुआ था मेरे दादा की अनाज की दुकान थी पिता अपना व्यापार शुरू करने के लिए सन 1944 में अपने परिवार सहित जिला डेरा गाजी खान में चले गये | हमारे परिवार में मेरे पिता, मेरी माता, मेरी दो बहनें तथा एक छोटा भाई थे| पिता जी ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर कपड़ों का व्यापार शुरू किया |
सन 1947 में जब हिंदुस्तान व पाकिस्तान के बंटवारे का माहौल बना, तब मेरे पिता जी व छोटे भाई जिसकी उम्र 4 साल की थी को लेकर दादा-दादी को मिलने तौंसा शरीफ गये | वापिस आते समय दंगाईयों ने बस लूट ली तथा मेरे पिता व छोटे भाई को बेरहमी से मार डाला यह खबर सुनकर मेरे दादा-दादी ने मुझे, मेरी माता तथा मेरी दोनों बहने को डेरा गाजी खान से वापिस तौंसा शरीफ़ बुला लिया |
अक्टूबर, 1947 में जब मेरी उम्र 8 वर्ष थी, हम सब भारत जाने के लिए ट्रकों में बैठकर मुल्तान आये | वहाँ से आठवें दिन जाकर विभाजन वाली रेलगाड़ी में हमारा नंबर आया |
गोरखा फ़ौज का पहरा था लाहौर के पास ट्रेन को दंगाइयों ने रोकने की कोशिश की | हमने काफी मुश्किल का सामना करते हुए हर रुकावट को पार करते हुए, डर के साये में अमृतसर पहुंचे | वहाँ से हमें हिसार भेजा गया रिफ्यूजी कैंप में, कुछ दिनों बाद हम 3-4 परिवार हिसार के मोहल्ले डोगरान में एक ही मकान में रहे | उस मकान का दृश्य काफी दर्दनाक व भयावह था | किसी तरह हमने ऐक वर्ष वहाँ काटा |
एक वर्ष बाद हमें नगीना तहसील फिरोज़पुर झिरका मेवात में जमीन एलॉट हुई इस तरह हम वहीं रहने लगे | जहाँ फिर से मेरे दादा ने अनाज की दुकान खोल ली | मेरी विधवा माता ने दिल्ली से सिलाई का परीक्षण लिया और नगीना में सिलाई का काम करके हम तीनों भाई-बहनों को बड़ा किया |
1959 में मेरी नौकरी राजकीय महाविद्यालय हिसार में लग गई, 1972 में मेरा तबादला गुड़गाँव में हुआ | इस दौरान मैंने अपनी दोनों छोटी बहनों की शादी करवाई तथा अपना मकान बनवाया, मेरा स्वयं का परिवार चलाया मेरे दो पुत्र और पत्नि समेत 1999 में, मैं सेवानिवृत्त हुआ | मेरी स्वावलंबी माता को मनाकर गुड़गाँव ले आया और नगीने से हमारा सम्बन्ध समाप्त हुआ अपने छोटे पुत्र के साथ रहता हूँ |